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चौदमो अने पन्दरमो सैको
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छिबइ (छबे छे) परवारइ-(परवारे छे-पार करे
छे-पूरं करे छे-भूत० परवार्या–पार पाभ्या-पूरं
करीने ऊठ्या) फडफडइ ( फडफड थाय छे) नाथइ ( नाथे छे) ऊपडइ ( ऊपडे छे)
नीमटइ (नीमटे छे-निवर्ते छे) चांपइ-चांपे छे ऊलषइ-(ओळखे छे) गंधाअइ-(गंधाय छे) छेकइ (छेदे छे-छेके छे–चेके छे) राचइ (राचे छे-रचाय छे) दाझइ (दझाय छे-दाझे छे)
वगेरे
१४९ संग्रामसिंहे जणावेला ऊपरना शब्दोथी जोई शकाय एम छे के चौदमा सैकाना पूर्वार्धनी गुजराती भाषा अने चालु गुजराती भाषा वच्चे शाब्दिक अंतर घणुं ओछे छे. भलु, भली, भलं ए त्रण उदाहरण संग्रामसिंह त्रण जातिने समझवा माटे आपे छे. स्त्रीजातिनुं अने नान्यतरजातिनुं रूप तो ते भाषामां अने वीसमा सैकानी भाषामां तद्दन सरखं छे. नरजातिनुं रूप वर्तमानमां भलो' प्रचलित छे. ए उपरांत ते भाषामां क्रियापदो साथे 'छे' उमेरवानी पद्धति नथी जणाती. वळी, ते समयनी भाषानां शब्दो अने क्रियापदोमां ज्यां 'ल' छे, त्यां चालु भाषामां 'ळ' प्रचलित छे.
अत्यार सुधीमां तेरमा अने चौदमा सैकानी कृतिओना शब्दो विशे जे विवेचन कर्यु छे अने तेमनी जे यादी ऊपर आपी छे ते ऊपरथी ते शब्दोनुं वलण आपणा तरफनुं स्पष्टपणे मालूम पडे छे, संग्रामसिंहना शब्दोनी सामे में जे काउंसमां हालतुं गुजराती रूप आप्युं छे ते ज तेनो प्रत्यक्ष पुरावो छे.
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