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गमार
चौदमो अने पन्दरमो सैको
४१३ 'गमार' शब्द फारसी 'गुमराह' न रूपांतर लागे छे. हेमचंद्र ‘मुहगमार
मुंझावु' धातुना पर्याय तरीके 'गुम्म' धातुनो
निर्देश करे छे (८-४-२०७) तथा ' मूढ' अर्थमां 'गुम्मइअ' शब्द होवान पण जणावे छे ( देशी० व०२, गा० १०३) 'गमार' साथे उक्त 'गुम्म' वा 'गुम्मइअ'र्नु कांई साम्य छे के केम ? ए विचारवा अहीं 'गुम्म्' नो उल्लेख कयों छे. सुभाषितसंग्रहकार जयवल्लभ पोताना वज्जालग्गमां ‘गवार' अने 'गामार'-(गाहावज्जा श्लो०१५-१६) एम बे शब्दोनो ‘गामडीयो-मूर्ख-अज्ञान' अर्थमां प्रयोग करे छे. प्रस्तुत ‘गमार' अने जयवलुमे प्रयोजेला ‘गामार' के 'गवार' वच्चे अर्थभेद नथी. संभव छ के 'जेमना आचारविचार ग्राम्य होय' तेवा लोक माटे 'ग्राम्याचार' शब्द वपरायो होय अने ते द्वारा उक्त त्रणे पदो आवेलां होयः ग्राम्याचार-गम्माचार-गम्मायार-गामार-गमार के गवार.
माद्यति-मज्जति-मज्जइ-माजइ-माचइ-ए रीते 'हर्ष' अर्थवाळा 'मद' धातु ऊपरथी ‘माचइ' अने चालु ‘माचवु' पदो आव्यां छे. ___ प्रत्येषि–पतिइज्जसि-पतीजसि ए रीते ‘पतीजसि' पद आव्यु छे. एनो अर्थ 'तुं विश्वास करे छे'.
'रुच्' धातुद्वारा ‘रुञ्चति' क्रियापद आव्यु छे. भर्तृ-भर्तार-ए रीते ‘भत्तार'. खरी-खरेखरी. एनी व्युत्पत्ति अवगत नथी. 'नडइ' क्रियापद अहीं 'सेवा' अर्थने सूचवे छे. “राजुल एनी . सखीने कहे छे के हे भोळी सखी! तुं खरेखर
गमार छे. नेमिकुमार विद्यमान होय त्यां सुधी पोते कोई बीजा पुरुषने सेवे तो समझQ के गजवरनो योग थयो छतां ते
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