________________
चौदमो अने पन्दरमो सैको
४११
करे छे (७-२-११४ ) ' ऊर्ध्व + रि- उन्भरि-ऊपरि' ए जोतां पण 'ऊपरि' नो आद्य 'ऊ' दीर्घ छे, ते बराबर छे. संस्कृत वैयाकरणोए ' उपरि 'मां मूळ ‘ऊर्ध्व' शब्द तो कल्प्यो परंतु साथै ' ऊर्ध्व' नो ' उप ' आदेश पण कल्प्यो छे. आ कल्पनाथी 'उपरि' शब्दनी निष्पत्ति तो थई परंतु तेनुं मूळ 'ऊर्ध्व 'मां छे तेनी निशानी भुंसाई गई त्यारे भाषानां ' ऊपरि' मां तेनी निशानी जळवाई रही छे. गुजराती जोडणीमां ' उपरि 'नी जोडणी आदिमां हस्वरूपे स्वीकारी छे. मने लागे छे के तेमां उक्त संस्कृत कल्पनानुं अनुकरण छे; परंतु शब्दना मूळने वीसारी देवामां आव्युं छे. ' ऊर्ध्व'ने 'रि' प्रत्यय लाग्या पछी ते द्वारा ऊपर जणाव्या प्रमाणे 'ऊपरि' पद बराबर आवी शके एम छे. ' ऊर्ध्व ' नो ' उप ' कल्पवानी जरूर नथी. अवेस्तानी भाषामां 'ऊपर' अर्थमां अनेक स्थळे 'उपइरि' शब्द आवेलो छे. ( खोरदेह अ० पृ० ४५ ) एज प्रमाणे ' नीचे ' ना अर्थमां ' अधइरि' शब्द अवेस्तामां वपरायेलो छे. ( पृ० ४५ ) ' उपइरि', 'अधइरि' नो 'इरि' जोतां एम भासे छे के ए 'इरि ' नुं मूळ ' ऊर्ध्वतरे ' ' अधस्तरे' मां रहेला सप्तमीविभक्तिवाळा 'तरे' पदमां होय. आ रीते तो वैयाकरणोए कल्पेलो 'रि' प्रत्यय पण संगत लागतो नथी. अवेस्तामां ' उपइरि' ए चतुरक्षर पद होई विलंबित उच्चारणवाळु छे माटे ज तेमां आद्य 'उ' लघु छे त्यारे भाषामां तो ए
३०७ आद्य वैयाकरण पाणिनिए कहां छे के 'ऊर्ध्व' शब्दनो ' उप ' आदेश करवो अने तेने 'रि' प्रत्यय लगाडवो. - ( ७- २ - ११४ ) खरी रीते ऊर्ध्व+र ( स्वार्थिक ) ते द्वारा प्राकृत उब्भर, तेनुं सप्तमी एकव० उब्भरे, अने ए 'उभरे ' द्वारा ' उप्पर' 'ऊपर' वगेरे पदो आवेलां छे. अने केवल ' उप्पि' पद तो ऊर्ध्वे - उब्भे - उप्पे - उपिं ए रीते आवेलुं छे. गूजरातीना प्राचीन नमूनाओमां अनेक स्थले उप्पर, ऊपरि, ओपरि एवां पदो उपलब्ध छे. आम, संस्कृत कहेवातुं 'उपरि', खरी रीते तो प्राकृत छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org