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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
नयणे छूटुं नीर संवेगजलहरि वरिसिउ । सामी खमि अपराध अम्हे लोक संतावीया ए ॥ ३३ ॥
पडिवज बोलइ राउ कोणी मन आनंदियउ । धन्न पती माइ इसिउ पुत्र जिणि जाईउ ओ । तो मोकलावी राउ चोरपल्लीसा संचरए । सजनह कही एउ अम्हे संजम लेइशउं ॥ ३४ ॥ किण कारणि वइराग तं कारण अम्ह बोलीइ ए । मेल्ही अट्टइ बाल कणयकोडि नवाणवइ ए । अनइ रिद्धि बहूत तिहिं पुण पार न जाणीय ए । जंबूसामिचरित्त महिमंडलि हूउं अच्छरीय || ३५ ॥ इणि कारण वयराग तृण जिम दीठउ मेल्हतउ ओ । अम्ह सोइ जि सामि तम्हे भलई अछजिउ ओ । मोहनरिदं-शउं झूझ संजमकित्तिई झूझसिउं ओ ॥ ३६॥ ठवणि—प्रभवउ पंचसएण अ वहूयर माइ- बप्पो ।
सवि कहं ए रूठ जाइ नीयघरहूंतु नींसरइ ए । चालीउ ए सिवपुरिसाथ सारथवय तिहिं जंबुसामि । कंचण ए रयणिहिं दाण जिम घण वरसइ भाद्रवए । सयतऊ ( ? ) ए ईह गोलोक भवियजणसंवेगकरो ॥ ३७ ॥
ठवणि— कस केरी पिइ माइ पुत्र कलत्र धन्न धण । देसी कुडिसारिच्छ जिण जिम जंबू परिहरए । अनइ लोक बहूत व्रत लेवा तिहिं चालीउ ।
वंदिय जिणभवणाई सोहम्मसामिपासि गयउ ॥ ३८ ॥
भवसायर ऊतार जम्मण - मरणह बीहतउ ओ ।
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