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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
पंचमहव्वयभार मेरुसमाणउ अंगमइ ए। अनु तेतउ परिवार सोहमसामिहिं दिक्खीउ ओ । हूउं केवलनाण संजमराजह पालतां ए ॥ ३९ ॥ वीर जिणिंदह तीथि केवलि हूउ पाछिलउ । प्रभवउ बइसारीउ पाटि सिद्धिं पहुतु जंबुस्वामि । जंबुसामिचरित पढई गुणइं जे संभलई । सिद्धिसुक्ख अणंत ते नर लीलांहिं पामिसिइं ॥ ४० ॥ महिंदसूरिगुरुसीस धम्म भणइ हो धामीऊ ह । चिंतउ रातिदिवसि जे सिद्धिहि ऊमाहीया ह । बारहवरससएहिं कवितु नीपनूं छासठ ए। सोलह विज्जाएवि दुरिय पणासउ सयलसंघ ॥ ४१ ॥
रेवंतगिरिरासु-तेरमो सैको
(प्राचीनगुर्जरकाव्यसंग्रह-वडोदरा ) परमेसर तित्थेसरह पयपंकय पणमेवि । भणिसु रासु रेवंतगिरे अंबिकदेवि सुमरेवि ॥१॥ गामा-ऽऽगर-पुर-वण-गहण-सरि-सरवरि सुपएसु । देवभूमि दिसि पच्छिमह मणहरु सोरठदेसु ॥२॥ जिणु तहिं मंडलमंडणउ मरगयमउड महंतु निम्मल सामल सिहरभरे रेहइ गिरि रेवंतु ॥ ३॥ तसु सिरि सामिउ सामलउ सोहग सुंदरसारु । जाइव निम्मलकुलतिलउ निवसइ नेमि कुमार ॥ ४
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