SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य प्रभवउ भणइ हो जंबुसामि एक साठि ज कीजइ । बिहुं विज्जावडई एक विज्ज थंभणीय ज दीजइ ॥ २१ ॥ हिव हूं कहि न विज ( ? ) लेवि पुण किसउं करेसो । आठइ परिणी ससिक्यणी नीछई व्रत लेसो । रूपवंत अणुरत्त रमणि एउ एम चएसिइ | अहंता सुतणीय आस मुझ जीव करेसि ॥ २२ ॥ एवड अंतर नरहं होइ प्रभवउ चिंतेई । संवेगरसि जउ गयउं मन प्रभवउ पूछेइ | सिद्धिरमणि ऊमाहीआ ह तम्हि संजम लेसिउ । करुणई विलवई माइप किम किम मेल्हेसिउ ॥ २३ ॥ इंदियाल न वि जाणीइए को किम होइसि । अढार नात्रां एकभवि जंबूस्वामि कहेई । पितर तम्हारा जंबुसामि ! किम तृपति लहेराई । पिंड पडइ लोयहंतणइ ए ऊभा जोसि ॥ २४ ॥ बाप मरवि भइंसु हुऊ पुत्रजन्मि हणीजइ । इण परि प्रभवा ! पितरतृप्ति तिथि धीवारे कीजइ । अणता सुतणी य आस हूं तउं छांडेसिउ । तिण करसणि जिम कलत्र भणइ अवतरता करेशिउ || २५ || तम्ह रुपिहिं हउं लोभ करउं देषि मणहर रूयडउं । हत्थिकडेवर काग जिम भवसायर निवडउं । बीज कलत्र कवि नाह ! जइ अम्ह छंडेसिउं । तिणिं वानरि जिम पच्छ्रुताप बहु चींति धरेसिउं ॥ २६॥ बिंदुसमाणउं विसयसुक्ख आदर किम कीजइ । इंगालवाहग जेम तुम्हि तृस किम न छीपइ । Jain Education International ३८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy