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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
सामिय बंदिउ बद्धमाण सेणीयं पूछीइं । कवणह नारिहि-तणइ उयारे एह जीव चवेसिइ । कवणह बापह-तणइ कुलि एउ मंडण होसइ । उसभदत्तसेठिहिं घरणि धारणिउरि नंदण । होसिइ नामिइं जंबुसामि तिहुयणि आणंदण ॥ १६ ॥ ऊठिउ देव अणाढिउ हरषिइं नाचेई । धनु धनु अम्हतणउं कुल एसु पुत्त होसिइ । चविउ विमाणह बंभलोय धारणिउरि आविउ । सुमिणप्रभाविइं उसभदत्त अंगेहि न माईउ ॥ १७ ॥ जायउ पुत्रु पहाण जाम दस दिसि उदयंतउ । बद्धइ नामिहिं जंबुसामि गुणगहण करंतु । अठवरीसउ हूउ जाम गुरुपासि पहूतु । ब्रह्मचारि सो लियइ नीम भववासविरत्तउ ॥ १८ ॥ जोयणवेसह पहुतु जाम कन्ना मग्गावइ । बीजा धूया पाठवए तस वि वारावय । मन देजिउं तम्हि, अम्ह देसु, अम्हि इसउं करेशउं । सांझहं परणी प्रहह जाम नीछई व्रत लेसिउं ॥ १९ ॥ माय दुलंघीय तणइ वयणि परिणेवउ मन्नीउ । आठइ कन्या एकवार परिणीय घरि आवीउ । आठइ परणी मृगनयणी बुझवणइ बइटउ । पंचसए चोरेहं सिउं प्रभवउ घरि पइठउ ॥ २० ॥ नीद्र अणावीय सोयणीय आभरण लीयंता । ते सवि अछई थंभीया टगमग जोयंता ।
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