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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
पंच मुट्ठिहिं केस लुंचेवि
पाउरिअ कंबल रयणु
छिंदिऊण रयहरणु निम्मिवि निवह पासि गंतूण तुह धम्मलाहु होउत्ति जंपिवि
नरवर ! चिंतिउं एउ मई थूलभद्द पभणेइ । राइण वुत्तु सुचिंतिअउं अह सो पुरह चलेहि ॥ ५८ ॥
( २ ) महेन्द्रसूरिशिष्य-धर्मसूरि- जंबूसा मिचरिय-तेरमो सैको ( प्राचीनगुर्जरकाव्यसंग्रह - वडोदरा )
जिण चउवीसइ पय नमेवि गुरुचरण नमेवी | जंबूसामिहिं - तणउ चरिय भविउ निसुणेवी । करि सानिध सरसत्ति देवि जिम रयं कहाणउं । जंबूसामिहिं गुणगहण संखेवि वषाणउं ॥ १ ॥ जंबूदीपह भरहखित्ति तिहिं नयरपहाणउं । राजगृह नामेण नयर पहुविं वक्खाणउं । राज करइ सेणियनरिंद नरवरहं जु सारो । तासु-तणइ पुत्त बुद्धिमंत मंति अभयकुमारो ॥ २ ॥
अन्नदिणंतरि वद्धमाण विहरंत पहूतओ
सेणिउ चालिउ वंदणह बहुभत्ति तुरंतु
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