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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
तासु पुरओ असिदंडघाइण,
रक्खेती से कुल
मज्झ दोसि हम्मंतु राइण,
इय सुणि सिरियउ पिउवयणु करयलढक्कियकन्न । कंपड़ हा हा केम्व हउं पिउवहु करउं अहन्नु ॥ ४२ ॥
मंति साहइ वच्छ ! मा झूर, उनीसत्थिहिं हिउ
कुलहि कज्जि जं एकु मुचइ कुलरक्खिण कारणिण
तेण मज्झ मरणं पि रुचइ
हउं खाइसुविसु तालउड्डु नंद पणामु करंतु । पिउवहपावि न लिप्पि हिसि मई गयजीवु हणंतु ॥ ४३ ॥
तेण मन्त्रिउ कह वि पिउवयणु
तो मंतिण तालउडु,
खद्ध नंदरायह नमंतिण
सिरिएण तक्खणि खंडिउं
तासु सीसु खग्गण फुरंतिण,
हा हा करिवि भणेइ निवु सिरिअय ! किउ किं अकजु । सो जंपइ जो पहु-अहिउ तिण पिउणा विन कज्जु ॥ ४४ ॥
ताव चिंतइ मंतिमय किच्चि
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राएण सिरिअउ भणिउ
देमि तुझ मंतित्तु तुट्ठउ
सो जंपइ पयह उचिउ
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