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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
थूठभद्दु महु अस्थि जेट्टउ
सो नंदिण कोसाघरह भणिअउ हक्कारेवि । गिन्हसु पिउपउ तिण भणिउ गिन्हडं पहु ! चिंतेवि ॥ ४५ ॥
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एवं ति भणिय तो थूलभद्दु चिंतेइ तत्थ परमत्थ भद्दु । मणुयत्तह सारु तिवग्गसिद्धि तिहि विग्घहेउ अहिगारसिद्धि ॥ ४७॥
जं तत्थ रायचित्ताणुकूल आरंभ कुणंतह पावमूल । कउ मंतिहि जायइ विमलधम्मु जिणि लब्भइ सासउ सिद्धिसम्मु ॥ ४८॥ परपीड करेविणु जं पभूअ गिन्हहिं निउगि रुहिरु व्व जलूअ । नरनाहिण घिप्पइ नं पि दव्यु निप्पीलिवि सडं पाणेहिं सव्वु ॥४९॥ परवसहं सव्वु भयभिभलाह अन्नन्नपओअणवाउलाहं । अहिगारिजणहं कामभोअ संभवहिं वियंभिअ गुरु पमोय ॥ ५० ॥ कोसाघर बारस वच्छरेहि विसइहिं न तित्तु लोउत्तरेहिं । बहु रज्जकज वक्खित्तचित्तु किं संपइ होहिसि मूढचित्तु ॥५१॥
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