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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
तो नरनाहिण वरुण कुविऊण वारु निसिद्धु । वररुइ ताव विलक्खमण उलग्गइ सुरसिंधु ॥ ३४ ॥
खिविवि संझिहिं सलिल दीणार
गोसग्गि सुरसरि थुणइ
हाइ जंत सुचारु पाइण उच्छलिवि ते विवररुइहिं
चडहिं हत्थि तेण घाइण
लोउ परंपइ वररुह गंग पसन्निय देव |
मुणिवि नंदु वृत्तंतु इहु सयडालस्स कइ || ३५ ॥
सो पप गंग जइ देइ दीणार पेच्छयंतह
मह इमस्स तो देइ निच्छिउ संझाइ तो सिक्खवि
ब पुरिसु तत्थ मंतिण विसज्जिउ
सो वचिव पच्छ ठिओ जा अच्छइ पेच्छंतु । दिओ वररुइ तेण तओ तहिं दीणार ठवंतु ॥ ३६॥
ते वि अप्पिय तेण आणेवि
मंतिस्स गोसग्गि गओ सपरिवार तहिं नंदु नरवइ
तो गंग वररुइ थुणइ जंतु हत्थ - पारहिं जोवइ
तत्थ न किंचि वि सो लहइ होइ विसण्णु मणेण । ते नंदह दीणार तओ दंसिय सयडालेण ॥ ३७ ॥
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