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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति एह ललिअदेह बाल । नाइ जाइफुल्लुमाल ॥ ७२ ॥ (छंद-पुष्पमाला)
( बारमो सैको पूरो)
(१)
सोमप्रभमरि-तेरमो सैको जीव-मन:-करणसंलाप ( कुमारपालप्रतिबोध पृ० ४२५-) जे उण पइं फरिसिण-पमुह पंच पहाण निउत्त । मत्त निरंकुस हस्थि जिम्ब करिहिंति कज्ज अजुत्त ॥९॥
तहं मज्झिम फेडिवि कु वि पहाणु मइ अन्नह अप्पिउ तस्स ठाणु । एयाई पलोयउ सामिसाल पयडंतई निचु अणत्थ-जाल ॥१०॥ फरिसिंदिउ पभणइ हउं जि एक्क रुंधेवि सरीरु समग्गु थक्कु । इह अप्पु मणु व न हि अल्कि कोइ अवरिंदिय अणु वर मज्झ जोइ ॥ ११ ॥ न हु गम्मु अगम्मु व किं पि गणइ अब्बंभ कलुस अहिलास कुणइ । सकलत्ति वि हुंतइ महइ वेस पररमणि गमणि पयडइ किलेस ॥ १२ ॥
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