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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
(राजा) हणिअ दुजीहप्पसरणु पिअपुरिसोत्तम विणयाणंदणु । उअ गरुडपयम्मिं निबद्धरइ नरवर हरइ न कासु मणु ? ॥ ७ ॥ (छंद - गरुडपद ) तुह दंसणतुरंतिए सुंदर ! मुद्धिए सुणि जं किउ पञ्चल्लिउ । हारु निअंबि निवेसिउ रसणादामु वि थणसिहरोवरि घल्लिउ ||२४|| (छंद - रसनादाम ) पिउ आइउ निवडिउ पइहिं सपणयवयणिहिं अणुणिवि माणु मुआविअ । इअ सिविणयभरि आलिंगिमि जाम्बहिं ताम्बहिं सहि ! हय कुक्कडि रडिअ ॥ २७ ॥ ( छंद - स्वप्नक) (राजा) तुह रणि नट्ट रसायलि गय अरि कारणि इण किर भुअंगविक्कतय ! | ताहं विलासभवणि पुरि लीलावणि परिअंचहिं निवसहिं चिरु गयभय ॥ २८ ॥ ( छंद - भुजंगविक्रान्त ) किं झाइउ तिण अविचलचित्तिण किं निम्मलु तवु किउ समरिउमित्तिण । जं तुह मुहविब्भमहरु कंदोट्टविसह तरुणि ! चुंबिज्जइ भमरिण ॥ ३६ ॥ (छंद - कंदोट्ट ) गयघड तुरयघट्ट रहवूह महाभडनिवह रयणभंडार समिद्धुवि । उवगंधव्वनयरसमु पुहइवइत्तणु तिणु जिम्व चयहिं विवेअवंत कि वि ॥ ४२ ॥ (छंद-उपगन्धर्व ) सइ विज्जुल अविउत्तर तुहुं जलहर करि गुंदलु निह न जाणसि विरहिअहं ।
इअ भणि चिंतवि किंपि अमंगल दइअहुं अंसुपवाहु पलु उ पंथिअहं ॥। ४५ ।। (छंद-गोंदल )
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