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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
खलिअक्खरउं वयणु मुहु पंडरु तुह अक्खइ सहि ! मणु मयणाउरु
॥६२ ॥ (छंद-मदनातुर) ओ रणझणंत भमइ भमरावलि । मयणधणुह गुणवल्लि णं सामलि
॥६३ ॥ (छंद-भ्रमरावलि) गोरडिअहिं उवमिअइ न पर अञ्चब्भुअ। जइ किर हवइ फुल्लिअफलिअ कुंकुमलय ॥ ६६ ॥
(छंद-कुंकुमलता) (राजा) लंघइ सायर गिरि आरुहइ तुह अहंग ।
ससिसेहरहसिउज्जल नउक्खी कित्तिगंग ॥६७॥ (छंद-शशिशेखर) जं सहि ! कोइल कल पुक्कारइ फुलु तिलओ।
तं पत्तु वसंतु मासु कामहु लीलालओ॥६८॥ (छंद-लीलालय) (राजा) रेहइ तुह करि चंदहासओ ! नं रिउसिरीए केसपासओ॥६९ ॥
(छंद-चंद्रहास) जसु लोहचक्किण वि न दलिओ झाणु । तर्हि वीरि किं करउ
स कुसुमबाणु ।। ७१ ॥ (छंद-कुसुमबाण) मालइकुसुमु न लेइ चंदणु चयइ । तुह दसणउम्माही मग्गु जि निअइ ॥७२॥ (छंद-मालतीकुसुम) मलयानिलु मलयजरसु ससहरु कुसुमत्थरणु । विरहानलजलिअहि तसु सवु वि तणुसंतवणु ॥ ७७॥
(छंद-कुसुमास्तरण) निसुणिअ माइंदइ महुअरिसंलावु । ओ पवसिअतरुणि ! तिं पत्थुअओ पलावु ॥ ७८ ॥
(छंद-मधुकरिसंलाप)
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