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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
(राजा) सिंदुरिअ गुरुकुंभत्थल गयघड तुहु बलि अग्गलि । नराव ! उत्थर किर संधावलि ॥ ८३ ॥ ( छंद -संध्यावलि )
विज्जुलय मेहमज्झि अंधारइ गोरी ।
कवण हत्थभल्लि कुसुमाउह ! तोरी ॥ ८६ ॥ ( छंद - विद्युल्लता )
संतदृहं मयगलहं चिक्कारिहिं कलिअ ।
रणाई वि वज्जरहिं पंचाणण ललिअ || ८७॥
कर असोअदल मुहु कमलु हसिउ नवमल्लिभ । अभिणव वसंतसिरि एह मोहणठइलिअ || ८९ ॥
(छंद - पंचाननललित )
हिंडर सा धण जाम्व गहिल्लि विरहिण आखित्ती । देख वहु ता आणंदी जणु अमइण सिंती ॥ ९१ ॥
(छंद - अभिनववसंतश्री )
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पत्तउ एहु वसंत कुसुमाउलमहुअरु | माणिणि माणु मलंतर कुसुमाउहसहयरु ॥ ९४ ॥
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( छंद -क्षिप्तिका )
अलि मालइपरिमललुद्ध न अन्निहिं रइ करइ | सा भमरविलासविअड्ढ न अन्नहिं मणु धरई ।। ९५॥
(छंद - कुसुमाकुलमधुकर )
(छंद-भ्रमरविलास )
तुह विरहिं सा अइदुब्बली घण आवंडुर देह | अहिमयरकिरणिहिं विक्खिविअ चंदलेह जिम्व एह ॥ १०२ ॥
(छंद - चंद्रलेखिका)
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