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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
कद्दमभग्गा मग्गुलया बहुपिहुला दुत्तरजलुल्या ।
तिम्व भरु बहसु गुणधवलया ! जिम्व केम्वइ न हति पिसुणया ॥ ॥ १५ ॥ ( छंद-गुणधवल)
(राजा) कित्ति तहारी वण्णविणु कइ अन्नु न वण्णहिं । मालइ माणिवि किं भमर धत्तुरइ लगहिं ॥ १६॥
(छंद-भ्रमरधवल )
(राजा) पहु ! तुह वेरि अरण्णि गय, निच्चु वि निवसहिं जिम्व ससय । घणकंटयदुसंचरणि, तहिं झुंबड करीरवणि ॥ १९ ॥
( छंद-बटक )
पई विणु तहिं सुहय ! विलासु कवणु ।
विणुं चंदई मुहु जामिणिहिं कवणु ॥ ७ ॥ ( छंद - सुभगविलास )
सहि ! वहुलओ चंदुलओ पडिहाइ । रयणिवहूए कीलणगंडुओ नाइ ॥ १७ ॥ मन्नावि प्रिओ जइ वि कयदुन्नओ ।
(छंद - क्रीडनक )
जं महमहइ दुसहर बउलामोअउ || १८ || ( छंद - बकुलामोद)
देक्खिवि वेलडी मलयमारुअधूआ ।
सुमरिवि गोरडी पंथिअसत्य मुआ || २३ || (छंद्र - मलयमारुत )
प्रियमहु संगमि ओअ मंगलिअई करई ।
किंसुअरूविण वणसिरि घट्ट धरइ || २५ || ( छंद - मांगलिका )
तारावलि भणि मा, भणि मुत्ताहलमाली ।
रइकलहिण त्रुट्टी ससि– रयणिहुं सुविसालि || ३२ ॥
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( छंद - मुक्ताफलमाला )
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