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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
लायण्णविब्भमं तरंगंतिहिं निदडवम्महं जिआवंतिहिं । प्रेमि प्रियाहिं जे पुलोइज्जइ ता मत्तलोइ सग्गु पाविज्जइ ॥ १३ ॥
(छंद-वित्रम) निच्छिउ करिवि चंदु दोण्णि खंड तहि निम्मिय मयनयणाइ गंड। वरकुसुम घडेविणुं गंधचंगु कोमलु तह विरइओ एहु अंगु॥१४॥
(छंद-कुसुम) सुणिवि वसंति पुरपोढपुरंधिहं रासु। सुमरिवि लडह हुओ तक्खणि पहिउ निरासु ॥ १५ ॥
(छंद-रास) ते जि पंडिअ, ते जि गुणवंत, ते तिहुअणसिर उवरि, ताहं चिअ जम्मु जाणहु, जे मत्तविलासिणिहिं नवि खोइअ
सुझाणओ ॥ २६ ॥ (छंद-मत्तविलासिनी) गाम्बि पट्टणि हट्टि चउहट्टि राउलि देउलि पुरि जं दीसइ । लडहअंगिअ विरहिंदजालएण तं सा एक वि कय बहुरूवकलिआ
॥३० ॥ (छंद-बहुरूपा) मायाविअहं विरुद्धवायवसवंचिअलोअहं परतित्थिअहं असारसत्थसं
पाइअमोहहं । को पत्तिज्जइ सम्मदिहि जहवत्थुअवयणहं जिणहं मग्गि निश्चलनिहि
त्तमणु करुणाभवणहं ॥ २॥ (छंद-वस्तुवदनक) अज वि नयण न गेण्हइ तरलिम अन्ज वि वयणु न मेल्लङ्ग
भोलिम। अन्ज वि थणहरु भरु न पडिच्छइ तु वि मुद्धाहं दंसणि जगु
मुज्झइ ॥ ६॥ (छंद-वदनक)
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