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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य जिभिदिउ नायगु वसि करहु जसु अधिन्नई अन्नई । मूलि विणदृइ तुंबिणिहे अवसे सुक्कई पण्णइं ॥६६॥ एक्कसि सील-कलंकिअहं देज्जहिं पच्छित्ताई जो पुणु खण्डइ अणुदिअहु तसु पच्छित्ते काई ॥ ६७ ॥ पहिआ ! दिही गोरडी दिट्ठी मग्गु नीअंत । अंसूसासेहिं कंचुआ तिंतुव्वाण करंत ॥ ६८ ॥ पिउ आइउ सुअ वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ठ । तहो विरहहो नासंतअहो धूलडिआ वि न दिट्ठ ॥ ६९॥ संदेसें काई तुहारेण जं संगहो न मिलिज्जइ ।। सुइणंतरि पिएं पाणिएण पिअ ! पिआस किं छिज्जइ ॥ ७० ॥ एत्तहे तेत्तहे वारि घरि लच्छि विसंठुल धाइ । पिअपब्भट्ट व गोरडी निश्चल कहिं वि न ठाइ ॥ ७१ ॥ देसुच्चाडणु सिहिकढणु घणकुट्टणु जं लोइ । मंजिट्टए अइरत्तिए सव्वु सहेव्वळ होइ ॥ ७२ ॥ सोएवा पर वारिआ पुप्फवईहिं समाणु । जग्गेवा पुणु को धरइ जइ सो वेउ पमाणु ॥ ७३ ।। हिअडा ! जइ वेरिअ घणा तो किं अब्भि चडाहुं । अम्हाहिं बे हत्थडा जइ पुणु मारि मराहुं ॥ ७४ ॥ बाह विछोडवि जाहि तुहुं हडं तेवइ को दोसु । हिअयहिउ जइ नीसरहि जाणउं मुंज! सरोसु ॥ ७९ ॥ जेप्पि असेसु कसायबलु देप्पिणु अभउ जयस्सु । लेवि महव्वय सिवु लहहिं झाएविणु तत्तस्सु ॥ ७६ ॥ गप्पिणु वाणारसिहिं नर अह उज्जेणिहिं गप्पि । मुआ परावहिं परमपउ दिव्वंतरई म जंपि ॥ ७७ ॥
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