________________
-३५८
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
चूडुलउ चुण्णीहोइसइ मुद्धि ! कवोलि निहित्तउ | सासानलजालझलक्किअउ बाहसलिलसंसित्तड ॥ ३३॥ हिअइ खुडुक्कइ गोरडी गयणि घुटुक्क मेहु । वासारत्ति वासु अहं विसमा संकडु एहु || ३४ ॥ पुत्ते जाएं कवणु गुणु अवगुणु कवणु मुरण | जा बप्पीकी मुंहडी चंपिज्जइ अवरेण ॥ ३५॥
तं तेत्तिउ जलु सायरहो सो तेवड विथारु । तिसहे निवारणु पलु वि न वि पर धुहुअइ असा ॥ ३६ ॥ जं दिउं सोमग्गहणु असइहिं हसिउ निसंकु | पिअमाणुसविच्छोहरु गिलि गिलि राहु ! मयंकु || ३७ ॥
सवधु करेपिणु कधिदु मई तसु पर सभलउं जम्मु । जासु न चाउ न चारहडि न य पम्हउ धम्भु ॥ ३८ ॥
जइ केइ पावीसुं पिऊ अकिआ कुछ करीसुं । पाणीउ नवइ सरावि जिवँ सव्वंगे पइसीसु ॥ ३९॥ उअ कणिआरु पफुल्लिअउ कञ्चणकांतिपयासु । गोरीवयणविणिज्जिअउं नं सेवइ वणवासु ॥ ४० ॥ वासु महारिसि एउ भणइ जइ सुइसत्थु पमाणु । मायहं चलण नवताहं दिवि दिवि गङ्गाण्हाणु ॥ ४१ ॥ केम समप्पउ दुट्टु दिणु किध रयणी छुडु होइ । नववदंसणलालसर वहइ मणोरह सोइ ॥ ४२ ॥
ओ गोरीमुहनिज्जिअउ बद्दल लुक्कु मियंकु । अन्नु वि जो परिहवियतणु सो किवँ भवइ निसंकु ॥ ४३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org