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________________ आमुख पण आस्यप्रयत्नो, करणो अने बाह्यप्रयत्नोनी विविध प्रकारनी अशुद्धिओ, अज्ञान, एक ज शब्दना अनेकविध उच्चारणो, विजयी प्रजा अने पराजित प्रजा वच्चे गाढ संपर्क, पराजित प्रजानो ठेठ अंतःपुर सुधी प्रवेश अने लोहीनो संबंध, देशदेशांतरमा भ्रमण अने व्यापारादि कार्य माटे स्थिरवास, मिथ्याअभिमान, अशुद्ध उच्चारण, अशुद्ध वाचन अने व्याकरण तथा व्युत्पत्ति प्रति बेदरकारी वगैरे अनेकानेक कारणो भाषाभेदने नीपजावी शके छे. ७ एक वार एम कल्पी लईए के कोई एक समाज शुद्ध उच्चारणोनी विशेष तरफेण करनारो छे. बहारनो खास संपर्क शुद्ध उच्चारण: नथी. अने व्याकरण वा व्युत्पत्तिशास्त्र साथे सहानुभूति वाळा समाजमा पण छे. तेम छतां प्रकृतिए निर्मलां मानवना उच्चारणनिमित्तो स्थानो सदा एकसरखां होवां के रहेवां संभवित नथी. वळी, उच्चारणस्थानो ऊपर जेमनी असर सदा रहे छे एवी प्राकृतिक गरमी, शरदी, खानपाननी विशेष प्रकारनी अनुकूलता वगैरेनी परिस्थिति सदा एकसरखी रहेवी पण घटमान नथी. एवां एवां सर्व सुलभ अनेक निमित्तोने लीधे उच्चार्यमाण वर्णनो रणको सदा काळ एकसरखो रहेतो नथी. प्रच्छादनं च विभ्रान्ति यथालिखितवाचन॑म् ।। कदाचिद् अनुवादश्च कारणानि प्रचक्षते" -रूपकपरिभाषा (षड्भाषाचंद्रिकामा अवतरण) १७ “शब्दे प्रयत्ननिष्पत्तेरपराधस्य भागित्वम्" -मीमांसादर्शन अ० १, पा० ३ अधि० ८ सूत्र २५. “ महता प्रयत्नेन शब्दमुच्चरन्ति । वायुर्नाभेरुत्थितः उरसि विस्तीर्णः कण्ठे विवर्तितः मूर्धानमपहाय परावृत्तः वक्त्रे विचरन् विविधान् शब्दान् अभिव्यनक्ति। 'तत्र अपराध्येत अपि उच्चारयिता। यथा शुष्के पतिष्यामि इति कर्दमे पतति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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