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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
जहिं कप्पिज्जइ सरिण सरु छिज्जइ खग्गिण खग्गु । तहिं तेहइ भडघडनिवहि कन्तु पयासइ मग्गु ॥११॥ एकहिं अक्खिहिं सावणु अन्नहिं भदवउ । माहउ महिअलसत्थरि गंडस्थले सरउ ॥ १२ ॥ अंगिहिं गिम्ह सुहच्छीतिलवणि मग्गसिरु तहे मुद्धहे मुहपंकइ आवासिउ सिसिरु ॥ १३ ॥ हिअडा ! फुट्टि तड ति करि कालक्खेवें काई । देक्खउं हयविहि कहिं ठवइ पई विणु दुक्खसयाई ॥ १४ ॥ जीविउ कासु न वलुहउं धणु पुणु कासु न इछु । दोष्णि वि अवसर-निवडिआई तिण-सम गणइ विसिङ ॥ १५॥ एह कुमारी एहो नरु एहु मणोरह-ठाणु । एहउं वढ ! चिन्तन्ताहं पच्छइ होइ विहाणु ॥ १६ ॥ जइ पुच्छह घर वड्डाई तो वड्डा घर ओइ । विहलिअ-जण-अब्भुदरणु कंतु कुडीरइ जोइ ॥ १७ ॥ आयई लोयहो लोअणइं जाई सरई न भंति । अप्पिए दिइ मउलिअहिं पिए दिट्टइ विहसंति ॥ १८ ॥ आयहो दकलेवरहो जं वाहिउं तं सारु । जइ उट्टब्भइ तो कुहइ अह डझइ तो छारु ॥ १९ ॥ साहु वि लोउ तडप्फडइ वड्डत्तणहोतणेण । वड्डप्पणु परिपाविअइ हत्थिं मोक्कलडेण ॥ २०॥ जइ न सु आवइ दूइ ! घरु काई अहोमुहु तुज्झु । वयणु जु खंडइ तउ सहि ! एसो पिउ होइ न मज्झु ॥ २१ ॥
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