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बारमा अने तेरमा सैकानुं पद्य
( ३ )
हेमचंद्रन अवतरणो-चारमो सैको
( आठमो अध्याय पाद चोथो - अपभ्रंश प्रकरण ) एइ ति घोडा एह थलि एइ ति निसिआ खग्ग । एत्थु मुणिसिम जाणीअइ जो न वि वालइ वग्ग ॥ १ ॥ सायरु उपरि तणु धरइ तलि घल्लूइ रयणाई । सामि सुभिच्च वि परिहरइ सम्माणेइ खलाई ॥ २ ॥
गुणहिं न संपइ, कित्ति पर, फल लिहिआ भुंजंति । केसरि न लहइ बोड्डिअ - (कोड्डिअ ) - वि गय लक्खेहिं घेप्पंति ॥३॥
वच्छहे गृहइ फलई जणु कडु पल्लव वज्जेइ ।
तो वि महद्दुमु सुअणु जिव ते उच्छंगि धरेइ ॥ ४ ॥
जो
गुण गोवइ अप्पणा पयडा करइ परस्सु ।
तसु हजं कलिजुगि दुलहहो बलि किज्जउं सुअणस्तु ॥ ५ ॥ अग्गिएं उन्हउ होइ जगु वाएं सीअलु ते ।
जो
पुणु अग्गिं सीअला तसु उण्हत्तणु के ॥ ६ ॥ विप्पिअ - आरउ जइ वि पिउ तो वि तं आणहि अज्जु ॥ अग्गिण दड्ढा जइ वि घरु तो तें अगं कज्जु ॥ ७ ॥ संगरसहिं जु वणिअइ देक्खु अम्हारा कंतु । अइमत्तहं चत्तं कुसहं गय कुंभई दारंतु ॥ ८ ॥ वायसु उड्डावंति ए पि दिउ सहस - | अद्धा वलया महिहि गय अद्धा फुट्ट तड त्ति ॥ ९ ॥ भगउं देक्खिवि निअय बलु बलु पसरिअउं परस्सु । उम्मिल ससिरेह जिवें करि करवालु पियस्सु ॥ १० ॥
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