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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
मुणिसूरिहि जे तणा गुणा तहिं को संख मुणेइ ? । किं रयणायरु कु वि मुणिवि रयणह संख कहेइ ? ॥ १५ ॥ दुद्धरदप्पगइंदहरि कोइलकोमलवाणि । सो मुणिचंदु नमेहु परसंजमरयणह खाणि ॥१६॥ हरिभद्दसूरिकयगंथ जिणि वक्खाणिय नियबुद्धि । सो मुणिचंदु नमेह पर जिव पावहु वरसुद्धि ॥ १७ ॥ जिम बोलइ तिम्ब जो करइ सील अखंडु धरेइ । मुणिसुरि पंडियत्तोसयरु पन्हुत्तरइ दलेइ ॥ १८ ॥ जिंव महुयर आवई कमलि गंधाइढीय सत्त । तिम मुणिसूरिहि सीसगण सुयमइरंदासत्त ॥ १९ ॥ जहिं विहरइ मुणिचंदसुरि तहिं नासइ मिच्छत्त । चरइ नउलु जहिं ठावडइ सप्पु किं हिंडइ तेथु ? ॥२०॥ जिम्ब मेहागम तोसियहि मोरहतणा निकाय । तिम्व मुणिसूरिहिं आगमणि भवियाणं समुदाय ॥२१॥ सरयागमि जिव हंसुला हरिसिज्जति न-भंति (नभंमि)। तिम्व मुणिसुरि पडिषंडिया जण तुह आगम निब्भंति ॥२२॥ तह मणुयहं गउ विहल जमु जेहि न मुणिमुरि दिछु । किं व जच्चंधिहि लोयणिहि जेहिं न ससिहरु दिहु ॥ २३ ॥ जाहे पसन्ना तुह नयण तह मणुयह सयकाल । हियइच्छिय सुह संपडहिं अनु छिंदहिं दुहजाल ।। २४ ।। दूसमरयणिहिं सूर जिम्व तुह उहिउ मुणिनाह । सिरिमुणिचंद मुणिंद परमहु फेडइ कुग्गाह ॥ २५ ॥
(मारी हाथप्रत)
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