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________________ ३४० गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति पारनो नियम जोतां ‘परि' ऊपरथी 'पयिर'-पइर–थतां 'पेर'थर्बु शक्य छे. 'पर्यन्त' ऊपरथी 'पेरंत' ध्वनि पण ए रीते आवेलो छे, आ रीते 'प्रति' - 'पइति' अने 'प्रति' ना ज 'परि' नुं 'पइरि' परिवर्तन घणुं जूनुं छे. उक्त 'पेठे' पदमां पण जे 'प्रति' छे ते, 'पइति' के 'पइटि' थया पछी तेना अव्यवहित स्वरो एक बीजामां मळी जतां 'पेठे' पदरूपे ऊपज्यो छे. 'प्रकार' दर्शक 'पेरेनी उपपत्ति तो प्रकारेण-पयारेण-पयरेण'पयरे-पइरे-पेरे' ए रीते समझवानी छे; परंतु समानतावाचक 'पेरे' शब्दना मूळ माटे समानतादर्शक प्रति-पडि-पइडि-पइरि-पेरे आ रीते ते 'पेरे'नो उत्पत्तिक्रम योजाय तो विशेष संगत लागे छे. प्राकृतमा 'प्रति'र्नु 'परि' उच्चारण सुप्रतीत छे. परिहा (प्रतिष्ठा ), परिडिअं (प्रतिष्ठितम् ) -(८-१-३८ हे०) 'तमारा प्रत्ये' 'राजा प्रत्ये' एवा अर्थमां भाषामां 'पे' शब्द वपराय छे. ते सीधुं ज 'प्रति' नुं रूपांतर छे. प्रति-पइ-पे. आ 'पे' द्वितीयाना वा षष्ठीना अर्थनो द्योतक छे. आ रीते 'पेठे' 'पेटे' 'पे' ए बधां 'प्रति'नां परिवर्तनो छे. 'प्रति' अने 'परि' ना अर्थो पण अनेक बतावेला छे: प्रति“प्रति--इत्थंभूत-भागयोः॥ ३३ ॥ प्रतिदाने प्रतिनिधौ वीप्सा-लक्षणयोरपि” ।-(अनेकार्थसंग्रह-हे०) प्रति-प्रत्ये, भाग, प्रतिदान, प्रतिनिधि, वीप्सा अने लक्षण. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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