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बारमो अने तेरमो सैको 'मुख्यनी समान' एवा भावने सूचवे छे. “ प्रद्युम्नो वासुदेवात् प्रति" एटले प्रद्युम्न वासुदेवनो प्रतिनिधि छे-वासुदेवनी जग्याए छे–वासुदेवने स्थाने छे–वासुदेवनी पेठे छ अर्थात् अहींनो प्रति समानताना भावनो द्योतक छे. ए रीते मुख्य-सादृश्यना भावमां 'पेठे' शब्द आवे छे. 'आ राजा कर्णनी पेठे दान दे छे' ‘आ शूर, वीर अर्जुननी पेठे लडे छे' ' युधिष्ठिरनी पेठे आ राजा धार्मिक छे.' वगैरे प्रयोगोमां जे 'पेठे' शब्द आवेलो छे ते, मुख्य पुरुष कर्ण, अर्जुन अने युधिष्ठिरसादृश्य राजामां छे, ए हकीकतने दर्शावे छे. एटले ' प्रद्युम्नो वासुदेवात् प्रति' वाक्यमा जे भाव 'प्रति'नो छे ते ज भाव उक्त वाक्योमां वपरायेला 'पेठे' नो छे. ए जोतां ‘प्रति अने पेठे' मा अर्थ- साम्य छे एमां संशय नथी. अक्षर घटना जोतां ए बेनी वर्णानुपूर्वी पण समान ज छे. पण ' प्रति' ऊपरथी 'पेठे' आवे शी रीते ?
___ आ प्रश्ननो उकेल आ रीते छ: आवेस्तिक भाषामां अनेक स्थळे 'प्रति'ने स्थाने 'पइति' पद वपरायेलुं छे अने 'परि' ने स्थाने 'पइरि' पद वपरायेलुं छे. पेइतिश्तांम्-(प्रतिष्ठाम् पृ० ३५ खोरदेह अ०) पइतिश्तातेए ८, १०, १३-(प्रतिष्ठातवै पृ० ३६ खो० अ०) पईति-(प्रति-सामे) (पृ० ४६ खो० अ०) परि-(परि पृ० ६ खो०अ०) ईरि-(परि पृ० २४ खो०अ०) प्राकृत भाषामां ‘पर्यंत' शब्दने बदले ‘परंत' शब्द प्रवर्ते छे. (८-१-५८-हे.) 'परंत' मां 'परि + अन्त' एवां बे पदो छे. पालिमां केटलाक प्रयोगोमां ‘परि' ने बदले 'पयिर' एवं उच्चारण प्रवर्ते छे: पर्यस्त-पयिरत्त, पर्युपास्ते-पयिरुपासति, पर्युदाहाएः-पयिरुदाहसु. वाग्व्या
__ ३०२ जुओ पालिप्रकाश पृ० १६ टिप्पण*
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