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________________ आमुख शब्दार्थ अर्थात्-" अनादि अनंत अने अक्षरात्मक शब्दब्रह्म, अर्थरूपे विवर्त पामे छे अने तेनाथी जगतनी प्रक्रिया चाली रही छे"-एम कही तेओ शब्दतत्त्वनी अपूर्व–अवर्ण्य प्रतिष्ठा वर्णवे छे. __ आ रीते आपणा महर्षिओने शब्दतत्त्वनुं दर्शन जुदी जुदी दृष्टिए थयेलं छे. ए बधां आर्षदर्शनो अने यांत्रिक शब्दविज्ञाननी वर्तमान दृष्टिए बे वच्चे क्यांय सुमेळ बेसे छे के केम ? एनो खुलासो तो पाकट अनुभववाळो शब्दविज्ञानशास्त्री ज आपी शके. जे रीते शब्दना स्वरूपविशे प्राचीन लोकोए जुदा जुदा अनुभवो . घडी राख्या छे तेज रीते 'शब्द' अने शब्दार्थ' वा ‘पदार्थ' वच्चेना संबंधपरत्वे पण तेमनी भिन्न भिन्न मान्यताओ प्रवर्ते छे. प्राचीन चिंतकोना उक्त विचारो द्वारा आपणे शब्दना स्वरूपविशे कोई एक निर्णीत सिद्धांत नथी मेळवी शकता ए भले, परंतु जे समये आवा यांत्रिक शोधननी आटली बधी सामग्री न हती अने अत्यारे शिष्ट गणाती प्रजा असंस्कारी जीवन गुजारती हती तेवे समये पण आपणा पूर्वज चिंतकोना चिंतनीय प्रदेशमां 'शब्द' पण विशेष स्थान रोकी रह्यो हतो अने ए गूढ तत्त्वने समझवा तेमणे प्रबल प्रयत्न य सेव्यो हतो-एटली ज हकीकत आपणे माटे आजे गौरवरूप नथी? ४ तरतनुं जन्मेलं बाळक मात्र रडवानो ध्वनि करी शके छे, जेम जेम ए मोटु थतुं जाय छे तेम तेम हसवानो ध्वनि य करतुं थई जाय छे. _ पछी तो ए पोतानी वृत्तिओने व्यक्त करवा शारीरिक भाषास्वरूप चेष्टाओनो य आश्रय करतां शीखे छे अने एम करतां करतां अर्थसूचक भांग्या तूट्या व्यक्त शब्दो बोलतुं बोलतुं ते, तद्दन स्पष्ट उच्चारण सुधी आवी जाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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