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बारमो अने तेरमो सैको
३३३ होतउ" एवं वाक्य आपीने पंचमीसूचक 'हां' ने ज समझावेलो छे अने 'होतउ' पद तो वर्तमान कृदंतरूपे मूकेलं छे. ते वाक्यनी टीका करतां आचार्य पूर्णकलश लखे छे के “ होतउ भवन् जायमानः ” अर्थात् टीकाकार पण ए ‘होतउ' पदने वर्तमान कृदंत ज समझे छे. ए ज प्रमाणे " जहां होतउ आगदो" वगैरे वाक्योनी समझ आपनार दोधकवृत्तिकार पण ‘होतउ'नो भवन्' अर्थ आपे छे अर्थात् ' होतउ' के 'होतउ' ए बन्ने वर्तमानकृदंत ज छे, तेनो पंचमीना अर्थ साथे लेश पण संबंध नथी, अने तेमने हेमचंद्रे पंचमीना अर्थ माटे वापरेला पण नथी ए ध्यानमां रहे.
१३३ प्रस्तुत कृतिमां आ पद्य छ:
" प्रभव भणइ हो जंबुसामि एक साठि ज कीजइ । बिहुँ विजावडई एक विज भणीय ज दीजइ" ॥२१॥ अर्थात्
" प्रभव भणे (कहे ) : हे जंबुस्वामी ! एक साटुं ज कीजीए।
बे विद्यावडे एक विद्या स्तम्भनीका ज दीजीए" ॥ उक्त कडीनो उक्त अर्थ जोतां एमां वपरायेलां ' साठि' अने 'विजा
, वडई' ए बे पद विशेष ध्यान खेंचे तेवां छे. आज'साटे' अने 'वडे
काल वेपारीओनी भाषामा 'साटुं' शब्द विशेष * प्रचलित छे. कोई पण सोदो नक्की करवो होय त्यारे वेपारीओ ‘साटुं' शब्द वापरे छे अथवा कोई चीजनी अदलाबदली करवी होय त्यारे पण ‘साटुं' शब्दनो व्यवहार जाणीतो छे. 'साटापाटा करवा' ए प्रयोगमा ‘साटा' शब्दनो जे अर्थ छे ते 'साटुं' नो पर्याय ज छे.
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