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________________ ३२३ बारमो अने तेरमो सैको १२५ 'तण' पद संबंधने सूचवे छे. साधारण रीते ' तण' नो प्रयोग . पदनी लगोलग राखवानी पद्धति छे. आ कृतिमां ते 'तण'नो स्वतंत्र उपयोग ' पद्धतिमा फेरफार थयो छे, 'माय दुलंधीय तणइ वयणे' अने 'पुत्त तणउ विझराय' ए वाक्योमां 'तण' नो प्रयोग पूर्वनी रीते थयेलो नथी. प्रथम वाक्य 'माय तणइ दुलंधीय वयणे' एम होवू जोईए अने बीजुं वाक्य 'पुत्त विझराय तणउ' एम होवू जोईए. 'माताना दुर्लव्य वचनने लीधे' ए प्रथम वाक्यनो अर्थ छे अने बीजा वाक्यनो 'विंध्यराजनो पुत्र' एवो अर्थ छे. पहेला वाक्यमां 'माय' अने 'तणइ' नी वच्चे वचनना विशेषणरूप 'दुलंघीय' पदनुं व्यवधान छे अने बीजामां 'तणउ' नो प्रयोग विझराय'नी पछी जोईए ते पूर्व थयेलो छे. आ समय पछीना रासाओमां घणे स्थळे 'तण' ना अने षष्ठी विभक्तिओना प्रत्ययोना आवा ऊलटा-सूलटा प्रयोगो थयेला छे. _ 'पहूत' नी व्युत्पत्ति विशे चर्चा आगळ (पृ० २८०) आबी गई छे. आ कृतिमां ते, ' पहूत' अने ' पहुत' एम बन्ने रीते वपरायेलो छे. १२६ ‘वांदवा माटे' अर्थ बताववा : वंदणह' ' लेवा माटे' 'लेवा' 'मोकलाववा माटे'. 'मोकलावण' अने 'वंदणह' वगेरेनी ' 'बूझक्वा माटे' 'बूझवणइ' शब्दो वपराया छे. ते नागोवा व्युत्पत्ति पदोनी व्युत्पत्ति आ प्रमाणे करवानी छ : वंद + अणह, मोकलाव + अण, बुझव + अणइ. 'अणह' ' अण' अने ' अणइ' ए त्रणे तुमर्थने दर्शावनारा वा चतुर्थीना अर्थने दर्शावनारा प्रत्ययो छे. 'अण, अणहं, अणहिं, एवं, एवि, एप्पि, एविणु, अने एप्पिणु' ए आठ प्रत्ययो 'तुम् ' ना अर्थने सूचवे छे एम हेमचंद्र कहे छे (८-४-४४१). प्रस्तुतमां 'वंद् + अणहं' ऊपरथी 'वंदणहं' अने ते द्वारा 'वंदणह' पद आवेलुं छे. 'वंदणह' पदनी बीजी रीते पण निष्पत्ति थई शके एम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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