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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति न्यायदर्शनना अग्रणी गौतममुनिए अने वैशेषिक दर्शनना पुरोधा
___ कणादमुनिए शब्दने आकाशनो गुण कहीने गौतम-कणाद ।
५ वर्णन्यो छे. कदंबगोलकन्याये वा वीचितरंगन्याये शब्द- प्रसरण पण तेओ माने छे... जैनदृष्टि मुख्यपणे बे तत्त्वोने स्वीकारे छे: चेतन अने जड. जडना
- बे भाग छे–एक अमूर्त कोटिनुं अने बीजं मूर्तकोटिनु.
" पुद्गल मूर्तकोटिनुं जड कहेवाय अने आकाश अमूर्त कोटिनु. शब्द मूर्तिमंत छे माटे ज ते, जड पुद्गलनो विशेष प्रकारनो परिणाम छे. शब्द अने आकाश वच्चे गुणगुणीनो वा कार्यकारणनो संबन्ध जैनदृष्टि स्वीकारती नथी. भाषानी-शब्दनी-वर्गणाओ आखा य लोकाकाशमां पथरायेली छे. (' वर्गणा'नी समझ माटे ‘परमाणु' शब्द पूरतो छे.)
मूलद्रव्यग्राही द्रव्यार्थिक नयनी दृष्टिए जोतां 'शब्द' नित्य कहेवाय
४ “ गन्ध-रस-रूप-स्पर्श-शब्दानां स्पर्शपर्यन्ताः पृथिव्याः। अप्-तेजोवायूनां पूर्व पूर्वम् अपोह्य आकाशस्य उत्तरः"-गौतममुनिप्रणीत न्यायसूत्र अध्या० ३ आह्नि १ सूत्र ६०. ५ “तत्र आकाशस्य गुणाः शब्द-संख्या-परिमाण-पृथक्त्व-संयोग-विभागाः"
वैशेषिक दर्शन-प्रशस्तपादभाष्य. “परिशेषाद् गुणो भूत्वा आकाशस्य अधिगमे लिङ्गम् "
वैशेषिकद० आकाशानुमानप्रकार पृ० २५. ६ “सद्द-अंधयार-उज्जोओ पभा छाया-ऽऽतवु त्ति का।
वण्ण-रस-गंध-फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं" ॥१२॥--उत्तराध्ययनसूत्र
अध्य० २८ ७ वक्तानो जे अभिप्राय मूळ द्रव्यविशे प्रवर्ते अने द्रव्यगत गुणादि धर्मो प्रति उपेक्षावृत्ति दाखवे ते अभिप्रायनुं नाम द्रव्यार्थिकनय-भेदनो निषेध न करती अभेदग्राही दृष्टि-सन्मतिप्रकरण गा०३ ।
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