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बारमो अने तेरमो सैको
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आवेलुं छे. भाषामा ' मारूं' के 'म्हारं' बन्ने प्रवर्ते छे. पद्यमां वपरायेला * तुहारेण' नी पण एज उपपत्ति छे. 'तुहार' ऊपरथी तृतीयामां * तुहारेण'.
'अमे' ने बदले पद्यमां 'अम्हे' वपरायुं छे. वैदिक 'अस्मे,' पालि 'अम्हे' अने प्राकृत 'अम्हे छे. अपभ्रंशमां हेमचंद्रे 'अम्हे' अने 'अम्हई'
आपेलां छे. एकवचनमा 'हउं' के 'हउँ' पद वपरायेलुं छे. चालु भाषामा 'हुँ' छे, वैदिक अहम् , पालि अहं, प्राकृत हं, अहं, के अहयं वगैरे छे. ऊगती गुजरातीमां हेमचंद्र 'हउं' आपे छे. ते 'हउं' अने पद्योमा वपरायेलां 'हउं' वगैरे तद्दन मळतां छे. .. पद्योमा (स्त्री० ) एह, एइ, (पुं० ) एहो, (न०) एहु पदो भाषाना 'ए' अर्थमां वपरायेलां छे. उक्त कवितामा त्रणे लिंगमां जुदां जुदां रूपो मूकेलां छे. त्यारे भाषामा 'ए' शब्द त्रणे लिंगमां सरखो छे. वैदिक 'एतद्', पालि 'एत', प्राकृत 'एअ' अने भाषामां ए. भाषामां ‘एणी' रूप पण प्रचलित छे, ते वैदिक 'एन' नुं स्त्रीलिंगी छे.
'आयई' रूप 'आ' अर्थमां वपरायुं छे. हेमचंद्र ‘इदम्' ने बदले 'आय' नी भलामण करे छे. भाषा, 'आ' ते उक्त 'आय' मांथी आव्यु छे अने भाषानुं 'इ' वैदिक 'इ' ऊपरथी आव्यु छे, ते आगळ कही दीधुं छे. पृ० ७३ [ ४९]. उक्त कविताओमां कवण, काइं उपरांत नरजाति अने नारीजातिनां कि, के,
कुइ, कुवि, कोइ वगेरे रूपो आवेलां छे. वै० कश्चित् , 'कवण' विशे
" पालि कोचि, प्रा० कोइ अने भाषामां पण कोइ. निरुक्तकार
भाषामां वपरातुं 'काइ' हेमचंद्रे बतावेला ‘काई' माथी थोडा फेरफार साथे आवेलुं छे. 'कवणं' शब्दनु मूळ अज्ञात छे, पण
२९० जुओ टिप्पण २३२.
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