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________________ ३०० गुजराती भाषानी उत्कान्ति 6 'कः ' नुं निरुक्त करतां यास्काचार्य ' कमनः वा क्रमण : ' शब्दनो निर्देश करे छे, ए ऊपरथी मालूम पड़े छे के 'कमन' के 'क्रमण' शब्दनो निर्देश करनार यास्कनी सामे 'कवण' शब्दनी हयाती होय. 'कवण' - 'कमन' के 6 'क्रमण' मां विशेष फेर नथी. यास्काचार्य लखे छे के.-" कः कमनोवा क्रमणो वा सुखो वा " [ पृ० ७३८ ]. उक्त पद्योमा 'ते' ना अर्थ माटे 'सो', 'सु', 'सा' के 'तं' पद वपरायां छे. वैदिकादि भाषाओमां ' ते 'नां रूपो लिंगप्रमाणे जुदां जुदां थाय छे. आ पद्योमां पण तेनो ए रीते व्यवहार थयेलो छे, त्यारे भाषामा तो त्रणे लिंगमां प्रथमाना एकवचनमां 'ते' पद ज वपराय छे, एटलुं ज नहि पण बधी विभक्तिओमां 'ते' रूप ज मूळ अंग तरीके वपराय छे. भाषामा ' ते 'नी आवी वपराश क्यारथी शरू थई ए बाबत हवे पछीनां अवतरण द्वारा जणाववानी छे. 'जे' ना अर्थ माटे पण उक्त पद्योमां 'ते' माटे जणावेली रीते 'ज' शब्द वपरायेलो छे. त्यारे भाषामा तो त्रणे जातिमां 'जे' वपराय छे अने सर्व विभक्तिओमां पण 'जे' अंग चाले छे. 'जसु केरए' मां 'जसु' छट्ठी विभक्तिवालुं रूप छे अने तेने संबंधसूचक 'केर' प्रत्यय लागेलो छे. [ ८-२-१४७ ] मा सूत्रमां हेमचंद्र, संबंधदर्शक 'केर' प्रत्ययनी नोंध करे छे. संस्कृत ' कीय' अने आ 'केर' बच्चे साम्य होय एवं मालूम पडे छे. < तउकेहिं - तारा माटे, अन्नहिरेसि - अन्यने माटे. ( पृ० २४६ - २४७) भाषामां वपरातां (स्त्री० ) जेणी, केणी अने तेणी उक्त ' एणी ' ना अनुकरण ऊपरथी आव्यां लागे छे. ' बिन्नि' नो भाषाप्रचलित प्रयोग ' बन्ने' छे. ' दोण्णि' अने ' बिन्नि' बन्ने समानार्थक पदो छे. अहींनुं 'बिहुं ' रूप षष्ठीनुं सूचक छे. भाषामां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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