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बारमो अने तेरमो सैको सुणिवि, सुमरि, मन्नावि, देक्खिवि, भणवि, करेप्पिणु, विछोडेवि, जेप्पि, देप्पिणु, लेवि, झारविणु, गंप्पिणु, गप्पि, गमेप्पि, जिणेप्पि, घडेविणु.-संबंधक भू० कृ०
अब्भत्थणि, विच्छोहगरु, सोएवा, जग्गेवा.--सामान्य कृ०
१०९ उक्त कृदंतोनी रचना जोतां ते बे प्रकारनां जणाय छे. एक तो एवां छे के जेओ संस्कृतमाथी प्राकृतना धोरणे वर्णविकार पामी सीधां आव्यां छे : दृष्ट-दिट्ठ, लग्ग-लग्न, मृत-मुअ, प्रनष्ट-पणट्ठ, दग्ध-दड्ड, प्रविष्ट-पइट, कृत-किय, भूत-हूअ वगेरे. बीजां धातुना अंगद्वारा मूळथी प्राकृतना धोरणे तैयार थयेलां छे. _ प्राकृतमां भूतकृदंत बनाववा माटे धातुमात्रने
'त'-'अ' प्रत्यय लागे छे. एक एवो नियम छे के प्राकृतमां कोई पण व्यंजनांत धातुने अंते 'अ' ऊमेराय छे. [८-४ -२३९ हे० ] तथा अकारांत सिवायना स्वरांत धातुने छेडे पण 'अ' विकल्पे उमेराय छे. [८-४-२४० हे० ] अने भूत कृदंतोमा लागेला ए 'अ' नो 'इ' थाय छ: (८-३-१५६ हे०) आ प्रक्रिया द्वारा जंप +अ+ अ = जंपिअ, पसर + अ + अ = पसरिअ, शुष्–सोस्+अ +अ = सोसिअ-सोसीअ. 'ध्या' धातु, झा+अ+ अ =झाइअ. 'व्याख्यान' ऊपरथी नामधातु-बक्खाण+अ+ अ = वक्खाणिअ. 'लुक्क' 'तुट्ठ' वगैरे भूतकृदंतो अनियमित रीते सधायेलां छे. ११० वर्तमान कृदंत माटे प्राकृतमा 'अंत' अने 'माण' प्रत्यय छे :
(८-३-१८१ हे० ) धातुना अंगने ए प्रत्ययो वर्तमानकृदंत लागतां ज वर्तमान कृदंत बने छे अने प्रत्ययो लाग्या पछी पूर्वोक्त नियमथी धातुने लागेला अंत्य 'अ' नो 'ए' पण थाय छे : (८-३-१५८ हे० )
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