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२८६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
अभयदेव-समरंत, करि, विलवंतउ, जंपिउ, चिट्ठिउ, कप्पिउ, बारमा कानां अवलंबिउ, किय, पत्तउ, पियंकरु, खेमंकरु, झंखंत, कृदंतो अनेतेमना सोहिय, थुणंतउ, मुयवि, जोइवि, पासिवि, दुक्खिय, प्रत्ययोनां मूळ पयासिउ.
उक्त पदोमां ‘करि', 'अवलंबिउ', 'मुयवि', 'जोइवि' अने 'पासिवि ' ए बधां संबंधक भूतकृदन्त छे.
‘समरंत', ' विलवंतउ', ' झंखंत', अने 'थुणंतउ' ए वर्तमानकृदंत छे.
‘पियंकरु' अने खेमंकरु' ए कर्तृसूचक कृदंत छे.
तथा जंपिउ, चिट्ठिउ, कप्पिउ, किय, पत्तउ, पयासिउ, अने दुक्खिय ए बधां भूतकृदंत छे अने क्रियापदने स्थाने वपरायां छे. देवमूरि-वक्खाणंतओ-वर्तमानकृदंत.
परिवारियओ, सोसीउ, वूहउ, फेडिय, वक्खाणिय, दिहु, पसन्ना, उहिउ.-भूतकृदन्त.
पयडिवि, मुणिवि.-संबंधक भू० कृदंत. हेमचंद्र-निसिआ, लिहिआ, दडा, दिट्ठउ, फुट्ट, पसरिअउं, आवासिउ, वाहिउं, मुइअ, गइअ, किअउं, दिद्वउं, पूरिअ, हुआ, मुंडियउं, निहित्तउं, संसित्तउ, मुएण, जोइउ, भग्गा, लग्गया, निम्मविअ, मुआ, त्रुट्टी, किउ, आइउ, पइट, बइट्टउ, पइट्टउ, विलग्गी, अकिया, लुक्का, पणहइ, विनासिआ, विद्वत्तउं, चडिआ, हसिउ, पम्हट्टउ. -भूत० कृ०
दारंतु, चिंतताहं, करतु, नवंताहं, संता, झलकंति, जिआवंतिहिं, रणझणंत, सिंती.-~-वर्त० कृ०
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