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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवतीसूत्र शतक २. उद्देशक १. स्कंदकनो अधिकार पृ० २४२ राय० जिना० )
उक्त वाक्यनो अर्थ एम छे के एक स्कन्दक नामनो तपस्वी पोताना मनमां आवी धारणा राखे छे के—“ ज्यां सुधी मारां उत्थान, बल, वीर्य अने पुरुषपराक्रम हयात छे त्यां सुधीमां अने ज्यां सुधी मारा धर्मोपदेशक धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर जिन अच्छिति-जीवता बेठा छे-हयात छे.” (त्यां सुधीमां हुं तेमनी पासे जाउं ए श्रेयरूप छे) उक्त 'अच्छिति' क्रियापदनुं मूळ, सत्तासूचक 'अस्' मां छे. ए ज व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवतीसूत्रमा बीजे स्थळे (शतक १, उद्देशक ७, प्रश्न २५८ मां ) जणावेलुं छे के-“जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिलए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्जए वा, चितुज्जए वा, निसीएज्ज वा, तुयट्टेज वा, माउए सुबमाणीए सुवइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहिआए सुहिए भवइ, दुहिआए दुहिए भवइ ?" अर्थात् “हे भगवन् ! गर्भमां गयेलो जीव चत्तो अच्छेज्जए-होय, पडखाभेर होय, केरीनी जेबो कुब्ज होय, चिडेजएऊभेलो होय, निसीज्जए-बेठेलो होय के तुयहेज-सूतेलो होय ? तथा ज्यारे माता सूती होय त्यारे सूतो होय, माता जागती होय त्यारे जागतो होय, माता सुखी होय त्यारे सुखी होय अने माता दुःखी होय त्यारे दुःखी होय ?"
अहीं 'अच्छेजए' नो अर्थ आपतां टीकाकार कहे छे के "'आसीत' सामान्यतः” अर्थात् “साधारणपणे 'होय" एवो अर्थ समझवो. 'बेसबुं' एवा खास अर्थनी सूचना माटे मूळकारे 'निसीएज्ज-' 'निषीदेत्' एवं जुएं क्रियापद आप्युं छे. तेथी अहींनी 'अच्छेन्जए' क्रिया ' होवा'ना अर्थने-सत्ताना भावने-सूचवे छे. अने ए अर्थ जोतां 'होवा' सत्ता-अर्थवाळा 'अस्' धातु द्वारा उक्त 'अच्छिति' के
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