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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
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आय' केम न बोलता होय ? ते एक संभावना. 'दुहाय छे' वगेरेमां आय' कर्तृसूचक छे अने ' जणाय छे' वगैरेमां कर्मसूचक छे. छतां अनुकरण करतां ते भेद रहेतो नथी एटले विपर्यास पण थई शके.
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यायते (जवाय छे ), ज्ञायते ( जणाय छे ), ध्मायते ( धमाय छे ), घ्रायते ( सुंधाय छे), आम्नायते ( अभ्यासाय छे) वगेरे प्रयोगो कर्मणि छे अने तेमां स्पष्टपणे 'आय' नो ध्वनि रहेलो छे. ए बधा प्रयोगो शुद्ध संस्कृतना छे. ए प्रयोगोना पूर्व संस्कारथी अने विशेष परिचयथी ' जगाय छे,' ,''बोलाय छे' वगेरेमां ' आय' आवी शके एम छे, ए बीजी संभावना. भाषामा थयेला बधा विकारो प्राकृतमां थईने ज आत्रे एवो कांइ एकांत नियम नथी. केटलाक एमे आवे अने केटलाकनो सीधो संबंध संस्कृतमां पण होय.
रूप
पालि भाषामा 'कृ' धातुनां करीयति, करिय्यति, करिय्यते, कयिरति अने कयति एवां अनियत रूपो थाय छे. आमांनुं ' करिय्यति ' लोकभाषामा ऊतर्यु होय अने तेना 'करि' नो'कर' थई 'करय्यति' करायति'कराय ' एवं रूप नीपजतां चालु ' कराय छे' एवं रूप तेमांथी नीपजी शके एवं छे. आ क्रममां कोई प्रकारना अर्थभेदने स्थान नथी. एक 'कराय छे' रूप नीपज्या पछी एनां जेवां ' जणाय छे,' 'बोलाय छे,' ' वर्णवाय छे' वगैरे रूपो ते ज रीते आवी शके तेम छे, ए त्रीजी संभावना.
'चोराविज्जइ' के 'चोरावीअइ' जेवां सादां कर्मणि रूपो थाय छे. तेना ' चोरा ' अंशना अनुकरण द्वारा 'कराय छे,' 'जणाय छे' वगैरे रूपो आवी शके छे. चोराविज्जइ - चोरावीअइ- चोराईअइ- चोराअइ- चोरायछे. ए चोथी संभावना.
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