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बारमो अने तेरमो सैको
२६९ आफरडी कन्या कन्या पोतानी मेळे मंडाय छे–शणगाराय छे." वगैरे. कर्मकर्तरिप्रयोग कर्मनी शक्तिनो प्रकर्ष बतावे छे अने एम छे माटे ज ते प्रयोगमां बीजा कर्तानी अपेक्षाने गौण करीने कर्मने कर्ता गणवामां आवे छे. आपणी भाषामां पण आवा प्रयोगोनो प्रचार तो छे ज. कर्मणि अने कर्मकर्तरिप्रयोगोमां क्रियापदोनी साधनामां खास अन्तर नथी. १०१ अहीं एक वात खास विचारवानी छे के साधारण रीते प्राकृत
___ भाषामां · ईअ' अने ' इज्ज' प्रत्ययवाळा धातुओ चालु भाषामा कर्मणिमां वपराया छे. उक्त कृतिओमां वपरायेलां 'जणाय छे' वगेरे : जाणीअड' ‘कप्पिज्जइ' वगैरे अंगो पण ए मांना 'जणाय' नी व्युत्पत्तिचर्चा प्राकृतना धोरणने अनुसरे छे, तो पछी भाषामां
'जणाय छे', 'कपाय छे' एवा प्रयोगोमां जे • “जणा', 'कपा' एवं आकारांत अंग छे ते क्यांथी आव्युं ? अने शी रीते
आव्यु ? आ विशे चोक्कस निर्णय आपवो कठण छे तोपण निर्णयसाधक जे केटलीक सामग्री मारा ध्यानमा छे ते अहीं जणावी दउं छु:
___ 'जणाय छे', 'कपाय छे' जेवा प्रयोगो कर्तामां पण मळे छे. हेमहंस-" मोर कीगाई" (केकायते), फिणाय छे (फेनायते समुद्रः), कहटाय छे ( कष्टायते ), रोमन्थायते-वागोळे छे, लोहितायते-लाल थाय छे, बफाय छे ( बाष्पायते ), धुंधवाय छे (धूमायते), ऊष्मायते; सुहाय छे (सुखायते-सुखमनुभवति ), दुहाय छे (दुःखायते ), शब्दायते, कलहायते, वैरायते, आमांना 'सुहाय छे', 'दुहाय छे', 'कहटाय छे' 'बफाय छे' 'धुंधवाय छे' वगैरे प्रयोगो तो भाषामां पण प्रचलित छे. 'दुहाय छे' वगैरे प्रयोगोमां जे 'आय' प्रत्यय छे, तेनुं ज अनुकरण करीने लोको 'जणाय छे' 'कपाय छे', 'वेचाय छे' वगेरे प्रयोगोमां
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