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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
उक्त कृतिओमां पहेला पुरुष- बहुवचन वपरायुं नथी. एकवचनमां 'उ' अने 'उ' प्रत्यय वपराया छे. वैदिक ‘मि' प्रथम पुरुषना एकवचननो प्रत्यय छे. ते ऊपरथी 'उ' प्रत्यय सीधी रीते आवी शके एम नथी परंतु प्रथम पुरुषना बहुवचनमां वपराता प्रा० 'मु' साथे ए - उं' के 'उ' नी सरखामणी करी शकाय एम छे. ___ आचार्य हेमचंद्रे प्रथम पुरुषना बहुवचनमा ‘हु' प्रत्यय जणावेलो
छे अने साम-साम, खटा-खट्राँ, दधि-दधि, कुमारी-कुमारी , मधु-मधु एवां उदाहरणो पण आपेलां छे. हेमचंद्रनुं आ विधान जोतां उक्त नासिक्यश्रुतिनी कल्पनाने प्रबल संवाद मळे छे. आ दृष्टिए जोतां 'इ' प्रत्यय 'ई' रूपे बने अने तेमां वाग्व्यापारनी दृष्टिए 'ह' श्रुति ऊमेराय ए कल्पना असंगत भासती नथी.
२८१ विद्वानोमां एक एवी कल्पना प्रवर्ते छे के संस्कृत वा प्राकृत क्रियापदोमां वपराता पुरुषवाचक प्रत्ययो 'अस्' धातुनां रूपो ऊपरथी आव्यां छे वा सर्वनामोनां रूपो ऊपरथी आव्यां छे. तेमनी आ हकीकत समझाय ए माटे आ नीचे वर्तमानकाळ तृ० पु. ना प्रत्ययो अने 'अस्' धातुनां रूपो तथा 'अस्मद् ' सर्वनामनां रूपो आपुं छु: वैदिक प्र०
'अस' धातुनां रूपो३-ति अन्ति अस्ति सन्ति २–सि थ
असि स्थ १-मि म
अस्मि स्म पालि प्र०
'अस्'-नां रूपो ३ ति अंति
अत्थि संति २ सि थ
असि, अहि अत्थ १ मि म
अस्मि, अम्हि अस्म, अम्ह प्राकृत प्र० ति अंति अस्थि संति
२ १
सि मि
थ, ह मो, मु, म
असि म्हि
म्हो म्हु म्ह
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