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________________ बारमो अने तेरमो सैको पुरुषना बहुवचननो 'हि' प्रत्यय नीकळेलो छे. ते बेमा मात्र साधारण उच्चारणनो भेद छे. अहीं तृ० पु० बहुवचनमां वपरायेलो 'ई' ते बहुवचनना उक्त 'हिं' साथे समानता धरावे छे. ते बे वच्चे मात्र 'ह' श्रुति जेटलो भेद छे. वळी एकवचनमां वपरायेलो 'हि' पण उक्त 'हिं' साथे पोतानुं स्वत्व साचवी रह्यो छे. उच्चारणनी दृष्टिए जोतां ए बे वच्चे नासिक्य श्रुतिनी विशेषता छे. अने अर्थदृष्टिए एकवचन बहुवचन जेवो भेद पण छे. परंतु आवो वचनभेद तो वेदोनी भाषामां पण प्रचलित छे. एटले परंपराए पण वेदभाषामूलक एवी ऊगती गुजराती भाषामां एवो भेद बाध न ज करे. तात्पर्य ए के उक्त कृतिओमां वपरायेला 'हिं' 'हि' अने 'ई' ए त्रणे त्रीजा पुरुषना सूचक छे अने त्रणे परस्पर समानतावाळा छे. ___ आ "हिं' प्रत्ययनुं मूळ कळी शकातुं नथी. कदाच वैदिक 'सन्ति' अने आवेस्तिक ‘हेति' क्रियापदमां न्यूनाधिकता करीने आपणा पूर्वजोए आ 'हिं' प्रत्यय नीपजावेलो होय. 'हेति' क्रियापद खोरदेहअवेस्तामां (पृ० ५,२३,३५) अनेकवार वपरायेलुं छे. अथवा तृतीय पु० एकव० ना वैदिक 'ति' ऊपरथी आवेला उक्त 'इ' प्रत्ययमां । ह' श्रुति अने नासिक्य श्रुतिनी विशेषता ऊमेरी तेने बहुत्वसूचक 'हिं' प्रत्ययरूपे योजवामां आव्यो होय एवी संभावना थई शके. २७९ वाग्व्यापारनी दृष्टिए स्वरमा 'ह' नुं मिश्रण सर्वथा स्वाभाविक छे. आजे पण 'एबुं' ने बदले 'हेवू' अने 'आवां' ने बदल 'हावां' नो ध्वनि सुप्रतीत छे. एथी 'इ' प्रत्ययमां 'ह' श्रुति ऊमेरायानी कल्पना असंगत नथी. २८० नासिक्यश्रुति माटे हेमचंद्र पोते ज कहे छे के अ, इ अने उ वर्ण ( ह्रस्व अने दीर्घ) जो विराममां आवेला होय तो तेनी नासिक्यश्रुति पण थाय छे अर्थात् विराममा आवेलो अ-अं, इ-इँ, उ-उँ ए रूपे पण बोलाय छे. हेमचंद्रे १-२-४१ (अ-इ-उ-वर्णस्य अन्ते अनुनासिक :-अनीदादेः) सूत्रमा उक्त हकीकत कहेली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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