________________
२६०
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
बहुवचनमां वपरायेला 'ह' नुं मूळ, वैदिक 'थ'—साथे मळता आक्ता अने पालिमां वपराता 'थ' (आज्ञार्थ द्वितीय पुरुष बहुवचन ) अने प्राकृतमां वपराता ( आ० द्वि०पु० ब०) 'ह' प्रत्ययमां छे. 'हु' नो संबंध पालिमां वपराता — व्हो' (भवव्हो, ददव्हो, कुरुव्हो ) साथे छे, अने 'वंदओ'-' वंदो'-' वांदो' प्रयोगमां वपरायेला 'ओ' नो संबंध पण उक्त 'व्हो' साथे जोडी शकाय एम छे : व्हो-हो-ओ एवं परिवर्तन संभवे छे. अने द्वितीय पुरुषनो सूचक 'उ' प्रत्यय उक्त 'ओ' मांथी फळेलो छे. वैदिक संस्कृतमां बीजा पुरुषना आज्ञार्थ बहुवचनमां 'ध्वम् ' प्रत्ययनो व्यवहार छे. उक्त 'व्हो' अने आ 'ध्वम्' वच्चे जे साम्य टकी रहेलं छे ते स्पष्ट छे. चालु भाषामां करो, लखो, भणो वगेरे द्वितीयपुरुष सूचक
आज्ञार्थ क्रियापदोमां वपराता 'ओ' नुं मूळ उक्त 'व्हो' मां छे. आज्ञार्थ त्रीजा पुरुष एकवचनमां पण 'उ' अने 'ओ' प्रत्यय वपरायेला छे. वैदिक 'तु' अने प्राकृत 'उ' मांथी ए 'उ' प्रत्यय आवेलो छे. अने 'ओ' पण उक्त 'उ' - रूपान्तर छे. " जयो जयो मा जुगदंबे " मां वपरायेला 'जयो' अने अहीं वपरायेला 'जयओ' ए बे वच्चे साधारण उच्चारण भेद सिवाय बीजो कशो भेद नथी.
अहीं वर्तमान काळना त्रीजा पुरुषना एकवचनमां 'इ,' 'ई' अने 'हि' प्रत्ययो वपरायेला छे. बहुवचनमा ‘न्ति,' 'हिं,' अने 'ई' प्रत्ययो वपरायेला छे. वैदिक 'ति' प्रत्यय, पालि 'ति' अने प्राकृत 'इ' ऊपरथी त्रीजा पुरुषना एकवचनना 'इ' अने 'ई' प्रत्यय आवेला छे. वैदिक ‘न्ति'–पालि ‘न्ति' अने प्राकृत ‘न्ति' ऊपरथी बहुवचननो ‘न्ति' प्रत्यय आवेलो छे. आचार्य हेमचंद्रे त्रीजा पुरुषना बहुवचनमां 'हिं' प्रत्ययनुं विधान करेलुं छे. अहींनो - हिं' अने हेमचंद्रे कहेलो (८-४३८२) 'हिं' बन्ने एक ज छे. आ 'हिं' प्रत्यय ऊपरथी त्रीजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org