SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख १ उर-छाती, २ कंठ-गळु, ३ माथु, ४ जीभनुं मूळ, ५ दांत, ६ नासिकानाक, ७ ओष्ठ-होठ अने ८ ताळवं. प्रयत्न बे छे : आस्यप्रयत्न अने बाह्यप्रयत्न. मुखनी अन्दर थतो प्रयत्न ते आस्यप्रयत्न. होठथी मांडीने कंठमणि-हडियासुधीना भागनुं नाम मुख. मुख सिवाय शरीरना अन्यभागमां-कोठामां-थतो प्रयत्न ते बाह्य प्रयत्न. जिह्वानुं मूळ, मध्यभाग अने अग्रभाग ते त्रण करण छे] कोई एक उच्चारणस्थानमां जगा मेळवतां ज ते प्राणवायु, पोताना आश्रयरूप स्थान साथे अथडाय छे-ए रीते स्थान साथे वायुना अथडावाथी बहार-आकाशमांध्वनि थाय छे. ए ध्वनिनुं नाम शब्द-ए ध्वनि पोते ज शब्दनो आत्मा. हवे ज्यारे ते ध्वनि उत्पन्न थाय छे त्यारे जो स्थान, करण अने प्रयत्नो ए बधां य एक बीजां परस्पर स्पर्श करतां होय तो ते स्पर्शनुं नाम स्पृष्टताप्रयत्न. ते बधां परस्पर जराजरा ज अडकतां होय तो ते जराजरा अडकवानुं नाम ईषत्स्पृष्टता. ते बधां एक बीजांनी समीप रहीने अडकतां होय तो ते क्रियानुं नाम संवृतता अने ते बधां एक बीजांथी दूर रहीने स्पर्श करतां होय तो ते स्पर्शन नाम विवृतता. ए चार प्रयत्नो मुखमां थाय छे माटे तेमनुं नाम आंतर प्रयत्न (आस्यप्रयत्न) छे. वळी पाछो ऊपर धसतो ते प्राणवायु माथामां अथडाई पाछो वळतो आपणा कोठा साथे अथडाय छे. कोठा साथे अथडातां कंठबिल-गळानुं छिद्र-विवृत थाय छे-ए विवृत थवानी क्रियानुं नाम विवार. वळी, ए वायु कोठा साथे अथडातां कंठबिल संवृत थाय छे-संवृत थवानी क्रियानुं नाम संवार. वळी, ते वखते ज्यारे कंठबिल विवृत थाय छे त्यारे एक श्वासरूप क्रिया थाय छे अने कंठबिल संवृत थाय छे त्यारे एक नादरूप क्रिया थाय छे. श्वास अने नाद ए बन्नेनुं एक नाम 'अनुप्रदान' छे. ["अनुप्रदान एटले अनुस्वान अर्थात् घंट के झालर वागी रह्या पछी अथवा वागतां होय त्यारे जे तेमना मुख्य अवाज साथे के पछी झणझणाट थाय छे तेनुं नाम अनुप्रदान” एवो बीजाओनो अभिप्राय छे. ] हवे ते वखते स्थान अने करणोनी अथडामणी थतां ते द्वारा पेदा थता ध्वनिमां ज्यारे नादनुं अनुप्रदान थाय छे त्यारे नाद अने ध्वनिना संसर्गथी घोष नामनी क्रिया थाय छे अने ते वखते ज्यारे श्वासनुं अनुप्रदान थाय छे त्यारे श्वास अने ध्वनिना संसर्गथी अघोष नामनी क्रिया थाय छे. ते वखते वायु अल्प होय तो अल्पप्राणतानो प्रयत्न होय अने वायु वधारे होय तो महाप्राणतानी क्रिया समझवी. ए महाप्राणताने लीधे ऊष्मता थाय छे. ज्यारे ते वखते सर्वांगा. नुसारी प्रयत्न तीव्र होय त्यारे गात्र कठण थाय छे. कंठबिल नानुं थाय छे अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy