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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
वायुनी तीव्रगतिने लीधे स्वरमा रूक्षता आवे छे-आवी उच्चारणनी क्रियाने 'उदात्त' प्रयत्न कहेवामां आवे छे. वळी, ज्यारे ए सर्वांगानुसारी प्रयत्न मंद होय छे त्यारे गात्र ढीलु पडे छे, कंठबिल मोटुं थाय छे अने वायुनी मंदगतिने लीधे स्वरमां स्निग्धता आवे छे-आ जातनी उच्चारण क्रियाने 'अनुदात्त' प्रयत्न कहेवामां आवे छे. हवे ज्यारे उदात्त स्वर अने अनुदात्त स्वर ए बन्ने स्वरो भेगा थाय त्यारनी उच्चारणप्रवृत्तिनुं नाम 'स्वरित' प्रयत्न छे. आ रीते १ विवार, २ संवार, ३ श्वास, ४ नाद, ५ घोष, ६ अघोष, ७ अल्पप्राण, ८ महाप्राण, ९ उदात्त, १० अनुदात्त अने ११ स्वरित ए अगियार बाह्य प्रयत्नो छे. प्रत्येक स्वर अने व्यंजननां स्थान, करण, आस्यप्रयत्न अने बाह्यप्रयत्ननी समझूती नीचे प्रमाणे छे :
अवणे
इवर्ण
(अ-आ)
है क वर्ग, ह अने विसर्ग-कंठ (इ-ई), चव,
च वर्ग, य अने श-तालु (उ-ऊ) पवग अने उपध्मानीय-ओष्ठ
ऋवर्ण (ऋ-ऋ))
है ट वर्ग, र अने ष-मूर्ध
। लवर्ण ) . . ..
(ल-लु)
त वर्ग, ल अने स-दंत
... तालु ... ओष्ठ ... दंत-ओष्ठ
ए ऐ ... ...
ओ औ ... ... __ व ... ... जिह्वामूलीय अनुस्वार ङ, ञ, ण, न, म ...
जिह्वा ... नासिका पोत पोतानां पूर्वोक्त
स्थान अने नासिका ... स्पृष्ट प्रयत्न (आस्यप्रयत्न) ... ईषत्स्पृष्ट प्रयत्न
'क' थी 'म' सुधीना व्यंजनो... य, र, ल, व ... ...
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