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बारमो अने तेरमो सैको
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? अभयदेव-छप्पन्निहिं बहुवचन वादिदेव०–सूरिहिं, जचंधिहि, लोयणिहि
) हेमचंद्र-गुणहिं, लक्खेहिं त्रणे कृतिओना उक्त प्रयोगो जोतां इण, एण, इ, एं, मात्र अनुस्वार, ए, (एकवचनमा) अने बहुवचनमां इहिं, हिं, इहि अने एहिं प्रत्ययो वपराया छे. चालु गुजरातीमां 'ए' प्रत्यय विशेष प्रचारमा छे. अने कचित् कचित् 'एण' अने 'इण' प्रत्ययो पण वपराय छे. छोकरे, घोडे, माणसे वगैरेमां 'ए' प्रत्यय छे अने 'केणे,' 'एणे,' 'तेणे' रूपोमां तथा 'किणि' 'इणि,' तिणि' जेवा केटलाक तळपदा ग्रामीण प्रयोगोमां ‘एण' अने 'इण' वपराया छे. ___ वैदिकमां त्रीजी विभक्ति माटे मूळ 'एन' प्रत्यय छे. ए 'एन' प्रत्यय ज उक्त इण, एण, इ, एं, मात्र अनुस्वार के 'ए' ना मूळमां छे. पालिमां 'एन' अने प्राकृतमां 'एण' के 'एणं' प्रत्ययोनो प्रचार छे. ए जोतां गुजरातीना त्रीजी विभक्तिना एकवचने पोतानी मूळ परंपरा साचवी राखेली छे. बहुवचनमां वैदिक 'एभिस्' प्रत्यय छे. उपर्युक्त ' इहिं,' हिं, “इहि' अने 'एहिं' प्रत्ययोर्नु मूळ आ 'एभिस्'मां छे. चालु गुजरातीमां ए 'एभिस्' साथे संबंध धरावतो कोई प्रत्यय नथी सचवायो पण तेने बदले उक्त 'ए' प्रत्यय वपराय छे. एकवचननो 'ए' भाषामां बहुवचनमां पण वपरावा लाग्यो छे : छोकराओए, माणसोए,
छोकरांए वगैरे रूपोमां उक्त 'ए' प्रत्यय तो छे बेवडा प्रत्ययो
' पण ते अनुक्रमे उक्त रीते बहुत्वसूचक एवा आ-ओ, अने वैदिक
ओ अने आं प्रत्यय पछी लागेलो छे. एटले ए
बधा अने एवा बीजा पण प्रयोगो बेवडा प्रत्ययवाळा छे ए ध्यानमा रहे. जेणे, केणे' ' तेणे' 'एणे' ए बधा त्रीजी
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