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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
बारमा सैकानी गुजरातीमा हस्व के दीर्घ इकारान्त वा उकारान्त स्त्रीलिंगी नामोने माटे प्रथमा अने द्वितीयाना एकवचनमां कोई खास प्रत्यय नथी. जेवू ने तेवु मूळ अंग ज वपराय छे वा तेना अन्त्य स्वरमा हस्व के दीर्घ जेवो फेरफार करीने वपराय छे. बहुवचनमां पण क्यांय उक्त रीते मूळ अंग ज वपराय छे अने क्यांय मूळ अंगने 'उ' के 'ओ' प्रत्यय लागेलो छे.
अभयदेव-सिद्धिउ, सिद्धि. वादिदेवमूरि-खाणि, वाणि. हेमचंद्र--थलि, कुमारी, निद्दडी, रयणी, बुद्धी, माली.
चालु गुजरातीमां 'वेलडीओ', 'नदीओ' वगेरे 'ओ' प्रत्ययवाळां रूपो प्रतीत छे. काठियावाडीमां ए 'ओ' ने बदले 'य' श्रुतियुक्त 'ई' प्रत्यय पण प्रचलित छे. 'वाडीयु' 'सखीयु', 'आंगळीयु' वगैरे.
वैदिक भाषामां नद्यः, वध्वः वगैरे रूपोमां 'य' अने 'व' श्रुतियुक्त 'अस्' प्रत्यय लागेलो छे. पालिभाषामां नदियो, इथियो, वधुयो वगैरेमा जे अंत्य-'य' श्रुतियुक्त–'ओ' छे तेनुं मूळ उक्त ‘अस्' प्रत्ययमां छे. एक ए 'ओ' ने बदले प्राकृतमा 'उ' अने 'ओ' एम बे प्रत्ययो नोंधाया छे. अने हेमचंद्रनी ऊगती गुजरातीमां पण ए बे प्रत्ययोनी भलामण छे. 'ओ' ऊपरथी 'उ' थईने ते बे प्रत्यय जुदा बनेला जणाय छे. 'ओ' वाळू स्त्रीलिंगी रूप विशेष प्राचीन छे.
८९ उक्त त्रणे कृतिओमां त्रीजी विभक्ति माटे जुदा जुदा प्रत्ययोत्रीजी विभक्ति वाळां रूपो वपरायेलां छे.
। अभयदेव-पसाइण, नामिण, सूलिण, रसायणेण.
वादिदेव०- तवि, जिणि. एकवचन
हेमचंद्र-वाएं, तें अग्गि, उड्डावंतिए, पुत्ते, J सरिण, कवणेण, सिरेण.
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