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बारमो अने तेरमो सैको
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सुणिवि-सुणि-(सांभळी) कंठिआ-कंठी (गळे पहेरवानी कंठी) वसंति-वसंते-वसंतऋतुमां वट्ठलओ-वाटलो सुमरि-सुमरी (याद करी) चंदुल्लओ-चंदलो-चांदलो-चांदलियो तक्खणि-टांकणे (ते वखते) गंडुअ-गेंद-कंदुक (दडो) पहिउ-ई-(पथिक-प्रवासी) मन्नावि-मनावी गाम्वि-गांव-गामे
देक्खिवि-देखी पट्टणि-पाटणे
वेल्लडी-वेलडी हट्टि-हाटे
सत्थ-साथ-(समूह) चउहट्टि-चौटे
मुआ-मुआ राउलि रावळे-रावणे
घट्टई-घाट-घाटडी (ओढवानुं | देउलि देवळे
स्त्री- वस्त्र) दीसइ-दीसे छे
त्रुट्टी-त्रुटी-तुटी पत्तिजइ-पतीजे ( विश्वास कीजे ) छड्डेविणु-छंडीने मेलइ-मेले (छोडे)
गोवालीअण-गोवालण भोलिम-भोळप
लग्गी-लागी जगु-जग
पाइ-पाय मुज्झइ-मुंझे छे-मुंझाय
छे
ज लइ-जळे छे झलकंति-झलकती-चळकती तवइ-तवे छे-तपे छे
२७० भाषामा 'पथिक-प्रवासी' ना अर्थमां प्रस्तुत 'पइ' शब्दनो व्यवहार चालु छे. ज्यारे आपणे त्यां कोई नोतरियो नोतरं देवा आवे छे त्यारे बोले छे के "सगटंम सइ परोणो पइ” सगटंम एटले सहकुटुंब, सह-सहित, परोणो एटले अतिथि अने पइ एटले पथिक-प्रवासी-मुसाफर. अर्थात् कुटुंब साथे अने मेमान तथा पथिक साथे-ए बधांने लईने जमवा आववानुं नोतरुं छे. “सगटंम सइ परोणो पइ" ए वाक्य काठियावाडमां प्रचलित छे अने अमरेलीमां तो में अनेकवार सांभळ्युं पण छे. पथिक-पहिअ-पइ-ए त्रणे समान शब्दो छे.
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