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________________ आमुख विवया-विवइ (विपत्) संपया-संपइ (संपत्) र' नो लोप अने । वधारो (४) ''नो लोप ८-४-३९८ संयुक्त व्यंजनमा पाछळ आवेलो 'र' विकलो लोपाय छे–पिय, प्रिय ( प्रिय ) (५) 'र' नो वधारो ८-४-३९९ कोई कोई पदमां 'र' वधारारूपे आवी जाय छे–वास, त्रास (व्यास) केटलाक शब्दो (६) केटलाक शब्दो ८-४-४०२ जेह ( यादृश) जेहवू जेवू तेह (तादृश) तेहवं तेवू नुं 'इ' उच्चारण थाय केवी रीते ? 'द' अने 'इ' मा उच्चारणनी दृष्टिए लेश पण साम्य नथी. मने लागे छे. के संपदा-संपया-संपय-संपइ. विपदा-विवया-विवय-विवइ. आपदा-आवया-आवय-आवइ आ प्रकारे 'संपइ' वगेरे शब्दो नीपजाववा भाषाविज्ञाननी दृष्टिए विशेष संगत भासे छे. १९७ प्रस्तुत 'र' नो वधारो वैदिक प्रयोगोमां पण थयेलो छे त्यारे पाणिनीय संस्कृतमां एवा 'र' वधारावाळा प्रयोगो उपलब्ध नथी. वैदिकप्रयोगो माटे जुओ पृ. ५८ कंडिका [१७] प्रस्तुत व्याख्यान. . १९८ 'यादृश' वगेरे ऊपरथी 'जेह' 'जेहबुं' के 'जैसा' पद लाववा माटे नीचेनो क्रम सुघटित भासे छेः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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