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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति "गुजराती' के 'गुजराती योद्धो' ना अर्थमां आ० हेम चंद्रे ‘गुजर'
शब्दनो प्रयोग अनेकवार को छे. परंतु भाषा माटे 'देशीराग' अने ए शब्दनो प्रयोग आ० हेमचंद्रे के ते समयना 'मेळो' अर्थनो गुर्जरी शब्द
बीजा विद्वाने को होय एम जाण्यु नथी. 'देशी
राग'नो सूचक गुर्जरी' शब्द छे, किन्तु तेवा अर्थमां वपरायेला 'गुर्जरी' नो प्रयोग सौथी प्रथम कोणे को छे ते जाणवानुं साधन नथी. उक्त गुर्जरी' शब्दनो संबंध गुज्जर लोको वा गुज्जरदेश साथे छे एटले राग माटे जेम ‘गुर्जरी' शब्द वपरायो छे तेम भाषा माटे ए शब्द ते वखते केम नहीं वपरायो होय ? ए शोधनीय तो खरं ज.
जे माटीमाथी घडो नीपजतो होय ते माटीने अंतिम माटी कहो के 'घडो' कहो ए बधुं सरखुं छे तेम हेमचंद्रना समयनी 'अंतिम १८४ “ गुजरदलम्मि"--गूर्जरसैन्ये-प्रा० द्वया० सर्ग ६ श्लो० ५९.
" लज्जिरगुज्जरेहि "-लज्जनशीला ये गुर्जराः तैः-सर्ग ६ श्लो० ६५. " गुज्जरलोओ”-गूर्जरलोकः-सर्ग ६ श्लो० ६८.
१८५ हिंदीशब्दसागरमां ' गुर्जरी' रागनो परिचय आ प्रमाणे छे: “भैरव रागकी स्त्री। यह संपूर्ण जातिकी रागिनी है। इसमें तीव्र मध्यम और शेष सब स्वर कोमल लगते हैं । यह रामकली और ललितको मिला कर बनती है इसके गाने का समय दिनको १० दण्डसे १६ दंड तक है।
गुर्जरीनो बीजो अर्थ-“गुजरात देशकी स्त्री" पण ते कोशमां आपेलो छे.
१८६ फारसी भाषामा 'गुज़री' शब्द स्त्रीलिंगी छे. तेनो अर्थ 'मेळो' छे "वह बाजार जो प्रायः तीसरे प्रहर सडकोंके किनारे लगता है" आ अर्थ 'गुजरी' शब्दनो छे (जुओ उर्दू-हिंदीकोश-हिं.) फारसी भाषामा “निकास-गति । निर्वाहकालक्षेप, पैठ-पहँच-प्रवेश"। अर्थमां नरजातिवाळो 'गुजर' शब्द छे अने एवा ज अर्थवाळु 'गुजरना' क्रियापद छे अने एने मळतो 'गुजरबसर' बोल पण छे. प्रस्तुत फारसी 'गुजर' कोई स्वतंत्र ज शब्द छे के एनो संबंध 'गुर्जर' पद साथे छे ए विचारणीय खलं.
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