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________________ १५६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ओनो जेटलो संबंध वैदिक भाषा साथे छे तेटलो पाणिनिनी शिष्ट भाषा साथे नथी. प्राकृत भाषाओनो मूळ देह अने वैदिक भाषानो मूळ देह ए बे वच्चे घj ज निकटनुं साम्य छे. त्यारे वेदोमां वपरायेली लौकिक भाषाने आर्ष कहीने पवित्र मानवी अने लोकोमा प्रचार पामेली प्राकृत भाषाओने हलकी-भ्रष्ट-कहीने अवगणवी एमां न्याय छे खरो? जे भाषा अर्थवाहक होय अने जेनां उच्चारणो शक्यताप्रमाणे नियत होय तेवी कोई भाषा भले होय परंतु तेमां 'अमुक भाषा तो सर्वोच्च छे अने अमुक भाषा तो हलकी छे' एवी कल्पना, भाषाना मिथ्या अभिमानथी ऊभी थयेली छे. ज्यारे भाषानो मिथ्या आडंबर वधी गयो अने भाषातत्वने ज प्रधानता अपावा लागी अने ते द्वारा सामान्य लोकोने तिरस्कार पात्र गणवामां आव्या त्यारे भगवान बुद्ध अने भगवान महावीरे लोकभाषाने ज बोलवानुं वाहन बनाव्युं अने समस्त वर्गमां बोलाती भाषाने प्रधान स्थान आपी लोकोनुं प्रतिनिधित्व स्थापित कयु. त्यार पछी जे जे लोकप्रतिनिधिरूप संतो-ज्ञानेश्वरतुकाराम-कबीर-तुलसीदास-नरसिंह वगेरे थया छे, तेमणे पण ते लोकभाषाने ज स्वीकारी छे. आपणे जाणिए छिए के लोकभाषानो आश्रय लेवा बदल ते ते संतोने केवी केवी पीडाओ सहन करवी पडी छे छतां तेओए लोकभाषाने ज प्रधान स्थान आपलं छे. वर्तमानमां पण लोकभाषाने प्रधान स्थान मळशे तो ज ग्रामीण लोको अने नागरिक लोको वच्चेनो कृत्रिम भेद मटी जशे अने ए बन्ने बच्चे पोष्यपोषकनो सनातन संबंध सचवाई रहेशे. अत्यारे जे ए संबंध तुटी गयो छे तेनुं एक कारण लोकभाषानी अवगणना पण छे. ___ कहेवानुं तात्पर्य ए के लोकभाषानुं 'अपभ्रंश' ए नाम जातिवादी ब्राह्मणोए आपेलुं छे. खरी रीते तो जेम एक काळे वेदोनी भाषा लोकभाषारूपे प्रचलित हती तेम 'अपभ्रंश' नामवाळी भाषा पण एक काळे समस्त भारतमा प्रचलित हती. एथी एवी समस्त लोकनुं प्रतिनिधित्व करती भाषाने हलका शब्दथी संबोधवी उचित नथी. 'लोकभाषा अपभ्रंश छे, लोकभाषा हलकी छे' एटलुंज कहीने ब्राह्मणो अटक्या नथी परंतु तेमणे तो एम पण कर्तुं छे के जे जे शास्त्रो ए लोकभाषामा छे ते पण भ्रष्ट भाषामां रचायेलां होई प्रामाणिक नथी, भले ए शास्त्रोमां अहिंसा वगेरे सत्तत्त्वो होय परंतु जेम कूतराना चामडानी कोथळीमां भरेलुं गाय, दूध पण भ्रष्ट छे-हेय छे तेम भ्रष्टभाषामां निरूपायेलां ए सत्तत्त्व पण त्याज्य-हेय छे.. तंत्रवार्तिकना प्रणेता महापंडित श्रीकुमारिले ऊपली हकीकत तंत्रवार्तिकमा (पृ. २३७ आनंदा०) आ प्रमाणे जणावी छे: Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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