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आमुख
xxx तथापि वर्णानुपूर्वीविज्ञानमात्रप्रयोजना तेषां व्युत्पत्तिः न पुनः अन्वर्थप्रवृत्तौ कारणम् इति रूढा अव्युत्पन्ना एव" ( अभिधानचिन्तामणिटीका श्लो० १, पृ० २ यशोवि०) तात्पर्य ए के — हस्त' शब्दमा 'हस् +त' एवो विभाग पाडी तेनी साधना उणादि द्वारा करी बतावी
गरुड. वध्यघातकभावसंबंधने लीधे 'सरि' शब्द ऊभो थयो छे. सर्प वध्य छे अने गरुड तेनो घातक छे एटले सपनो अरि-सारि-गरुड. एज प्रमाणे धार्यधारकसंबंध-वृषवाहन. जन्यजनकसंबंध-विश्वजनक. आश्रयआश्रयिसंबंधजलधि, समुद्रशायी. परस्परविरोधनो संबंध- 'सित' ऊपरथी असित (सित-धोळ, असित-काळ) ते ज प्रमाणे सितेतर (सित-धोळ, इतर-भिन्न.) धोळाथी भिन्नसितेतर. ब्राह्मणेतर-ब्राह्मणथी भिन्न-अब्राह्मण.
यौगिक शब्दोमां जे बे पदो होय छे तेने बदली पण शकाय छे एटले एकने बदले बीजं पण मूकी शकाय छे. जेमके, जलधि' ने बदले तोयधि, नीरधि. तेम ज जलनिधि, तोयनिधि, नीरनिधि वगेरे. अर्थात् ए यौगिक शब्दोमां ए प्रकारनो फेरफार थई शके छे माटे तेमनो स्वभाव परावृत्तिसह छे : परावृत्ति-अदलाबदली, सह -खमबुं-जे शब्दो परावृत्तिने खमी शके ते परावृत्तिसह.
मिश्र शब्दो होय छे तो यौगिक जेवा परंतु तेमनो अर्थ रूढि प्रमाणे थाय छे, नहीं के तेमनी व्युत्पत्ति प्रमाणे. ए शब्दो परावृत्तिसह नथी माटे यौगिक नथीः दशरथ. व्युत्पत्तिनी अपेक्षाए जे दश रथवाळो होय ते 'दशरथ' कहेवाय, परंतु अहीं तेम नथी. अहीं तो रूढिप्रमाणे तेनो अर्थ समझवानो छे अने ते रामचंद्रनो पिता-दशरथ. तेम 'दशरथ' ने बदले 'दशस्यन्दन' शब्द पण न वापरी शकाय अर्थात् मिश्रशब्दोनो स्वभाव परावृत्तिसह नथी. ए ज रीते 'गीर्वाण' जेनी गीर(वाणी) बाण जेवी छे ते गीर्वाण. व्युत्पत्ति प्रमाणे तो जे मर्मवेधी भाषा बोले तेने 'गीर्वाण' कहेवो जोईए परंतु अहीं तेम नथी. अहीं तो तेनो अर्थ रूढिप्रमाणे करवानो छे अने ते गीर्वाण-देव. वळी 'गीर्वाण' ने बदले 'वाणीबाण' शब्द न वापरी शकाय. तात्पर्य ए के यौगिक शब्दो तेमनी व्युत्पत्ति प्रमाणे प्रवर्ते छे, त्यारे मिश्रशब्दो व्युत्पत्तिवाळा होवा छतां तेमनी प्रवृत्ति रूढिप्रमाणे थाय छे अने यौगिक शब्दो परावृत्तिसह छे त्यारे मिश्रशब्दो परावृत्तिसह नथी.
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