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________________ १३६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति छे छतां ते अव्युत्पन्न ज छे. कारण के ' हस्' धात्वर्थ साथे 'हस्त' शब्दना वाच्यनो कोई प्रकारनो संबंध नथी. एथी ' हस्त'ना मूळमां ' हस्' धातु छे अने तेने ' त' प्रत्यय लागवाथी 'हस्त' शब्द नीपज्यो छे, ए कहेवुं कल्पनामात्र छे. आ रीते व्युत्पत्तिनी दृष्टिए संस्कृतना रूढ शब्दो अने प्राकृतना देश्य शब्दोमां खास भेद जणातो नथी. परंतु देश्य प्राकृत शब्दोनुं उच्चारण प्राकृतनी पद्धतिए प्रवर्ते छे त्यारे संस्कृत देश्य शब्दोनुं उच्चारण संस्कृतनी रीते प्रवर्ते छे, एवो भेद खरो. ६४ ' देश्य ' शब्दोनुं स्वरूप बतावतां आचार्य हेमचन्द्र कहे छे के." अइपाइअपयट्टभासाविसेसओ देसी " - ( देशीशब्दसंग्रह गा० ४ ) अर्थात् " देशी प्राकृत एटले अनादि काळथी प्रवर्तेली विशेष प्रकारनी प्राकृतभाषा - एक खास प्रकारनी प्राकृतभाषा " विशेष प्रकारनी "" १२० “ अनादिप्राकृत प्रवृत्तभाषाविशेषकः देशी ' अथवा 'अनादिप्राकृत प्रवृत्तभाषाविश्लेषक: देशी << ८८ ८८ अथवा " 'अनादिप्राकृतप्रवृत्त भाषाविशेषतः देशी ' 'अणाइपाइअपयट्टभासाविसेसओ देसी आ वाक्यनो अर्थ बतावतां आचार्य हेमचंद्र लखे छे के - " अनादिप्रवृत्तप्राकृतभाषाविशेष एव अयं देशीशब्देन उच्यते " अर्थात् " अनादि काळथी प्रवृत्त - प्रवर्तेल - जे विशेष प्रकारनी प्राकृतभाषा तेनुं नाम देशी. " हेमचंद्रना आ ' अनादिप्राकृतप्रवृत्तभाषाविशेषकः ' वाक्यमां 'प्रवृत्त' शब्द 'प्राकृत' शब्द पछी छे अने अर्थ करती वखते तेमणे ए शब्दने 'प्राकृत' नी पूर्वे मूकी 'प्राकृत' नुं विशेषण गण्यो छे. ८ मारी नम्र समझ प्रमाणे ते वाक्यनो अर्थ जरा जुदी रीते होवो जोईए अने ते आ प्रमाणे छे: आ• हेमचंद्रे उक्त वाक्यमां जे लक्षण 'देशी' नुं आप्युं छे ते, तेमणे पोते ज ऊपजाव्युं छे वा तेमणे पोते ज नवुं रच्युं छे एम नथी लागतुं. कारण के तेओ पोते ज जणावे छे के तेमनी सामे पादलिप्त वगेरे Jain Education International 33 " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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