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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति गोहिर, कफोणि, कफणि, अंगुरी, हस्त वगेरे. लौकिक संस्कृतमां आवा शब्दोनो पार नथी. शब्दव्युत्पादक वैयाकरणोए 'उणादि' नामनुं एक मोटुं प्रकरण रच्युं छे अने ते द्वारा ते ते बधा रूढ शब्दोमां प्रकृति अने प्रत्ययनी कल्पना करीने ते दरेक शब्दने साधी बताव्यो छे. तो पण ते रूढ शब्दो व्युत्पन्न नथी गणाता. रूढ शब्दो संबंधे लखतां आचार्य हेमचन्द्र कहे छे के—“ न हि अत्र प्रकृति-प्रत्ययविभागेन व्युत्पत्तिरस्ति
“ योगः अन्वयः स तु गुण-क्रिया-संबन्धसंभवः” (हैम० अभि० श्लो० २)
अर्थात् “जेमनी व्युत्पत्ति जाणी शकाय अने जेमनो अर्थ ए व्युत्पत्ति प्रमाणे प्रवर्ते ते यौगिक शब्द. ए यौगिक शब्दोमां केटलाक शब्दो क्रियाप्रधान, गुणप्रधान अने संबंधप्रधान होय छे.”
स्रष्टा, विधाता, विधि ए शब्दो क्रियाप्रधान छे: जे सर्जन करे ते स्रष्टा, जे विधान करे ते विधाता, विधि वगेरे.
तेज प्रमाणे रसवती-रसोई-करे ते रसोयो. कुंभ (घडो) करे-घडे ते-कुंभार. लोह-लोढुं-करे-घडे ते लुहार, चामडं करे ते चमार. सीवे ते सई. वगेरे.
नीलकंठ, कालकंठ, त्रिलोचन, पंचबाण, दशग्रीव वगेरे गुणप्रधान शब्दो छ: जेनो कंठ नीलो छे ते नीलकंठ-महादेव. जेनो कंठ काळो छे ते कालकंठ-महादेव. जेने त्रण लोचन छे ते त्रिलोचन-महादेव. जेने पांच बाण छे ते पंचबाण-कामदेव. जेने दश ग्रीवाओ-डोक-माथां-छे ते दशग्रीव-रावण वगेरे. _ जेनां त्रण पगलां छे ते त्रिविक्रम-त्रीकम. जेने चार पाग छे ते चोपगुं-पशु-गाय वगेरे. जेमा सात दिवस सुधी पारायण चाले छे ते सप्ताह. ( सप्त+अह-दिवस) जेमां आठ दिवस सुधी उत्सव वा उपवासो शरू होय ते अष्टाह-अट्ठाई.
भूपाल, चंद्रचूड, उमापति, सारि, जगन्नाथ वगेरे शब्दो संबंधप्रधान छे. जे भू-पृथ्वी-ने पाले ते भूपाल. (आमां 'भू' ए 'स्व' छे अने 'पाल' शब्द स्वामीपणुं सूचवे छे एटले 'भू' अने 'पाल'एबे वच्चे स्वस्वामिभावसंबंध छे तेथी 'भूपाल' शब्द पण ए ज भावने बतावे छे.) ए जरीते उमा+पति-उमापति. चंद्र + चूडा-चंद्रचूड- जेनी चूडामां चंद्र छे ते-महादेव. सर्प+अरि-सरि
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